उच्चारण के साथ - साथ उच्च आचरण का होना अनिवार्य हैं - पं . भगवतीप्रसाद तिवारी
हाटपीपल्या (संजू सिसोदिया) तीसरे दिन कथा प्रसंग में ध्रुवजी महाराज के वंश मे राजा अंग, पृथु चरित्र, प्रियव्रत और जडभरत, अजामिल एवं भक्त प्रहलाद , भगवान नरसिंह और हिरण्यकशिपु वध के कथा प्रसंग आध्यात्मिकता से वर्णन सुनाया । परमात्मा के बनाऐ संपूर्ण जगत में मनुष्य जब तक नाशवान सुखों को प्राप्त करना चाहता है तब तक उसे अविनाशी सुखों की प्राप्ति नहीं सकती । सारे मनुष्य मात्र हमेशा के लिए सुख शांति , आनंद को प्राप्त करना चाहता है लेकिन अज्ञानता वश क्षणिक नाशवान सुखों को पाने में शाश्वत , अविनाशी सुख की खोज ही नहीं कर पाता है । संसार के नाशवान सुखों को भोगने से दुखों का अंत होने वाला नहीं है, बहुत सुख भोगने पर भी शांति नहीं मिलती है । सत्संग के द्वारा हर मनुष्य अपने जीवन को सुखमय , शांतिमय आनंदमय बना सकता है। श्रीमद् भागवत कथा में सतगुरु शुकदेव मुनि जी महाराज ने राजा परीक्षित जी को कहा संसार के सब सुख सभी को नहीं मिल सकते लेकिन भगवान जी से मिलने वाला सुख शांति आनंद सभी को मिल सकता है। मनुष्य जीवन में भगवान जी के बिना पूर्ण सुख , शांति , आनंद नहीं मिल सकता। चाहे कितना भी धन संपत्ति , परिव