ज्ञान का शूल मारा, मारा रे गुरूर
देवास। सानिध्य का प्रभाव और साधना की तपिश से सोना कैसे निखरता है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण सुप्रसिद्ध भजन गायक संकेत दरकदार है। मात्र 9 वर्ष की उम्र में जिसने उज्जैन से शिर्डी तक का सफर पैदल चलकर तय किया आज संगीताकाश का अनमोल नक्षत्र है।
श्री शनैश्चर जयंती महोत्सव के चतुर्थ दिवस श्री शनि दरबार में भजन निशा का आयोजन हुआ। जिसमें प.पू. श्री जंगलीदास बाबा के परम शिष्य संकेत दरकदार ने सुमधुर भजनों की प्रस्तुती दी। गुरू शिष्य परम्परा में संगीत शिक्षा प्राप्त संकेत ने कार्यक्रम का आगाज पारंपरिक मंगलाचरण के साथ किया। सर्वप्रथम संत कबीरदास जी केे भजन छूरी नहीं मारी कटारी नहीं मारा रे गुरूर की प्रभावी प्रस्तुती दी। मराठी भजन अबीर गुलाल उधळीत रंग के पश्चात गुरूनानक जी का भजन जगत में झूठी तेरी प्रीत अपनी विशिष्ट शैली में प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। भजन निशा में जब संकेत ने देवास के कवि रमेश भावसार रचित भजन महिमा सुनकर द्वार पे आया की प्रस्तुती दी तो रसिक श्रोता झूम उठे। कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि संकेत ने प्रत्येक भजन या गीत को शास्त्रीय संगीत परम्परा के अनुसार विभिन्न रागों में पेश किया। कार्यक्रम के उत्तरार्ध में दिलकश गजलों से ऐसा समां बांधा कि श्रोता जैसे सम्मोहित हो गए। मेरी आवारगी ने मुझे, अपनी धुन में रहता हू, जुबां खामोश तेरी निकाहे बात करती है जैसी प्रस्तुतियों ने भरपूर दाद दी। सांई बाबा की कव्वाली किसी को उनकी मंजिल का पता पाया नहीं जाता पर उपस्थित रसिक श्रोता झूम उठे। संकेत की उत्कृष्ट हारमोनियम प्रस्तुति और उदियमान कलाकार नकुुल भगत ने तबले पर ऐसी जुगल बंदी की कि प्रत्येक बंदिश पर श्रोता वाह वाह कहने पर मजबूर हो गए। मलेशिया, सिंगापुर, पोलेण्ड, दक्षिण अफ्रिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में अपनी गायकी की प्रभावी प्रस्तुती देने वाले संकेत और नकुल की जोड़ी को श्रोताओं ने बहुत सराहा। अतिथिद्वय का स्वागत पं. अजय कानूनगो ने किया। कार्यक्रम के सूत्रधार संजय शेलगांवकर थे।
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