चिकित्सा का व्यवसायीकरण ना हो



      

लेखक राकेश कुमार देशला 

 

सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुख भाग भवेत्

अर्थात सभी सुखी हो सभी नीरा मैं निरोगी हो किसी को किसी प्रकार का दुख ना हो |

कहते हैं भगवान के बाद यदि किसी को स्थान दिया जाता है तो, वह है चिकित्सक का अर्थात डॉक्टर का ,यदि जन्म भगवान ने दिया है तो उसकी रक्षा करने का दायित्व चिकित्सक को दिया है | चिकित्सक को भगवान का दूसरा दर्जा यदि कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी| जब कोई व्यक्ति बीमारी से संक्रमित होता है , तो उसके जीवन पर बन आती है जिसके कारण वह अपना जीवन सहजता से नहीं जी पाता उसे अपनी बीमारी का उपचार कराने हेतु वैध या चिकित्सक या डॉक्टर के पास जाना होता है तथा चिकित्सक अपने मरीज को ठीक करना अपना धर्म समझता है | यह इतना पावन कार्य है जिसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती , किंतु आज के समय में यह देखा जा रहा है कि व्यक्ति की बीमारी में डॉक्टर अपनी कमाई देखते हैं| अपनी कमाई को बढ़ाने के चक्कर में अपने सिद्धांतों को पीछे रख में केवल और केवल धन अर्जन करना कि अपना मूल सिद्धांत बना बैठे हैं | उनकी नजरों में मरीज धन देने वाली कामधेनु के समान हो गई है | वह उसे इस नजर से देखते हैं जैसे कोई भूखा भोजन की ओर निहारता है ऐसे सोचता है कि इसे कैसे खाऊं , कितना खाऊं , जिससे मेरा पेट ज्यादा भरे| इसी तरह आज का चिकित्सा परिवेश हो चुका है जो मरीज सहज भाव से कम से कम पैसे में ठीक हो सकता है, किंतु चिकित्सकों की लालच के कारण वह आर्थिक रूप से अपना इलाज भी ठीक से नहीं करा पाता | उन्हें सब जगह कमीशन दिखाई देता है मेडिकल से लेकर पैथोलॉजी से लेकर हर सामग्री में , मरीज के माध्यम से उन्हें कमीशन चाहिए| ऐसा नहीं होता है तो वह मरीज का ठीक से इलाज नहीं करते हैं | सस्ती दरों में मिलने वाली दवाइयां कमीशन के चक्कर में कई गुना बढ़कर मिलती है तथा कई ऐसी अनावश्यक दवाइयां लिख दी जाती हैं जिनकी आवश्यकता भी नहीं होती है| केवल और केवल धन अर्जन करने हेतु इसके बाद अपने बंधी हुई पैथोलॉजी से अनेक प्रकार की जांच कराई जाती है जिनकी आवश्यकता भी नहीं होती है | वह भी कई ऊंची कीमत में होती है जिसके चलते मरीज की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है , किंतु वे बेचारे मेडिकल वाले ,पैथोलॉजी वाले कर भी क्या सकते हैं? यदि डॉक्टर को कमीशन ना दिया जाए तो वह उन लोगों की दुकान से मरीज की दवाएं या पैथोलॉजी की रिपोर्ट गलत बताई जाती है , यदि यह सब ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब व्यक्ति को अपना इलाज कराने के लिए लोगों के साथ डकैती या मारपीट या हत्या तक परहेज नहीं होगा | कहीं ना कहीं यह अपराधिक प्रवृत्ति को भी जन्म दे सकता है चिकित्सक को चाहिए कि वह उसके मरीज की बीमारी पर ध्यान देते हुए उसे कितनी जल्दी ठीक किया जा सकता है और कितने कम पैसे में ठीक किया जा सकता है, यह ध्यान देना चाहिए आप लोगों की ऐसी हरकतों के कारण आज  समानता उत्पन्न हो रही है ऐसा सामाजिक परिवेश नहीं होना चाहिए|



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