आज की शिक्षा पद्धति - डॉ. राकेश कुमार
डॉ. राकेश कुमार
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
विद्या विनय देती है; विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है ।
शिक्षा व्यक्ति को सर्वगुण संपन्न बनाने के लिए होती है किंतु आज की स्थिति में ऐसा देखा जा रहा है कि विद्या या शिक्षा धन कमाने का एकमात्र साधन बन चुका है तथा वैदिक काल में शिक्षा पद्धति आश्रम आधारित होती थी जिसमें व्यक्ति आश्रम में रहकर संस्कृति ध्यान योग गणित संस्कार ब्रह्मचर तथा शस्त्र विद्या शास्त्र विद्या आध्यात्मिक विद्या से परिपूर्ण पद्धति होती थी जिसमें व्यक्ति का संपूर्ण विकास होता था जिसके चलते भारत विश्व गुरु के रूप में विख्यात था लेकिन कई वर्षों से हमारी मूल शिक्षा पद्धति को भ्रष्ट कर विभिन्न प्रकार की शिक्षा पद्धतियों का प्रयोग किया जा रहा है जिसके चलते आज की स्थिति में शिक्षा केवल व्यवसाय हो चुकी है अगर वास्तविकता देखी जाए तो आज की पद्धति से व्यक्ति शिक्षित हो रहा है किंतु क्या यह पद्धति रोजगार उन्मुख है यह चिंता का विषय है आज आ लोगों के द्वारा प्राइवेट स्कूलों में लाखों रुपया लगाकर बच्चों को पढ़ाया जाता है किंतु जब स्कूल से बाहर होते हैं तब उनकी यह स्थिति नहीं होती है वह क्या कर सकता है तथा कई में तो निर्णय लेने की क्षमता भी नहीं होती कि आगे क्या करेंगे वे केवल गुलामी की मानसिकता में जकड़े हुए होते हैं अध्यात्म तो कहीं से कहीं तक दिखाता नहीं है तथा आज की शिक्षण पद्धति के कारण ब्रह्मचार्य पूर्णत: क्षतिग्रस्त हुआ है
यदि समय रहते शिक्षा पद्धति में बदलाव नहीं किया गया तो आने वाले देश का भविष्य गर्त में जाता हुआ दिख रहा है
आज के समय में जिस शिक्षा पद्धति की आवश्यकता है उसमें आज के दौर की शिक्षा की आवश्यकता है जैसे तकनीकी शिक्षा कंप्यूटर शिक्षा साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा को एक साथ मिलाकर ऐसी शिक्षा पद्धति लानी चाहिए जिससे हम पूरे विश्व में भारत का डंका बजाने सक्षम रहे क्योंकि आने वाले समय में अध्यापकों की भी आवश्यकता है तकनीक की आवश्यकता है जिसके कारण व्यक्ति संयमित रह कर अपने देश को आगे बढ़ाने तथा खुद के व्यक्तित्व का विकास कर सकें
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