आंदोलनों में पुलिस बेबस ? क्या लोकतंत्र है खतरे में ? सरकार और विपक्ष दोनों को करना पड़ रहे आंदोलन और रैलियां ! कौन सही - कौन गलत ?
पुतला दहन में पुतले बने पुलिस - प्रशासन के जिम्मेदार , अप्रिय घटना में कौन जिम्मेदार ?
देवास। पिछले दिनों भाजपा ने एक किसान आक्रोश रैली निकाली थी जिसमें उपस्थित नेताओं ने राज्य की कांग्रेस सरकार ने खुब खरी-खोटी सुनाई थी। उक्त रैली में भाजपाईयों ने किसानों के ऋण माफ न करने, बिजली बिलों आदि के संबंध में भाषण दिये थे। साथ ही कलेक्टर कार्यालय में मुख्यमंत्री का पुतला जलाने में भी विपक्षी सफल रहे । इस दौरान उपस्थित पुलिस और प्रशासन ने उक्त पुतले को सफलतापूर्वक जलने दिया।
ठीक वैसी ही स्थिति आज के आंदोलन की रही जिसमें कांग्रेस के नेताओं ने केन्द्र सरकार पर निशाना साधा और केन्द्र से किसी भी प्रकार की मदद न मिलने पर सरकार में काबिज नेताओं को आंदोलन करना पड़ा । इस दौरान नेताओं ने सेस और राष्ट्रीय आपदा की राशि राज्य को न देने की बात कही। इस आंदोलन के दौरान कांग्रेसियों ने प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया और यह पुतला भी कलेक्टर कार्यालय में जलाया गया।
दोनों स्थितियों पर गौर किया जाए तो दोनो पार्टियां एक- दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप कर रही हैं। एक पार्टी कहती है कि हमें केन्द्र से सहायता नही मिलती तो दुसरी कहती है हमारे पास पैसा नही है। इन दोनों के बड़े नेताओं से जनता ने यही अपेक्षा की होगी। संभवतः दोनों पार्टीयों ने किसानों को और रोजगारों को पैसा बांटने का ऐलान किया था लेकिन अब जब बारी आई जनता की तो उन्हें केवल रैलियों और विरोधो में छुपकर अपनी और कार्यकर्ताओं की जेब गरम हो रही है।
कलेक्टर कार्यालय बना पुतला दहन केन्द्र
दोनों पार्टियों ने अपनी हठधर्मिता के चलते प्रशासनिक स्थान पर प्रदेश और देश के मुखियाओं के पुतले दहन किये। इस दौरान आम आदमी पर अपनी ताकत की औकात दिखाने वाली पुलिस दोनों रैलियों के पुतलों दहन में पुतला बन कर खड़ी रही। गौरतलब है मध्यप्रदेश में एक समय इस प्रकार के आंदोलनों से किसान आंदोलन ने एक बड़ा रुप ले लिया था। वर्तमान में देश में एक बड़ा फैसला आने वाला है और समूचा देश हाई अलर्ट पर है ऐसे में राजनीतिक रोटियां सेंकने से किसी भी अनहोनी की जिम्मेदारी कौन लेगा?
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