भारतीय ग्रामीण जिवन में खेल और उसका महत्व
गांव में हमसे पहली वाली पीढ़ी खेलकूद में अच्छी थी। उसका खास गेम वॉलिबॉल था। दो- तीन लोग पास की कॉलेज टीम में हॉकी भी खेलते थे लेकिन हॉकी स्टिक खरीद पाना तब सबके बूते की बात नहीं थी सो विधिवत हॉकी हमारे यहां कभी नहीं खेली जा सकी। वॉलिबॉल की बात अलग थी। रोज शाम को स्कूल के पास नेट बंधता और बॉल की टनाटन आवाज जैसे ही गूंजनी शरू होती. धीरे-धीरे पुरा गांव खेल देखने के लिए उधर जमा हो जाता। बचपन में मैंने कई बार बाहर की टीमों को हमारे यहां आकर मैच खेलते, कभी हारते कभी जीतते, एक-दसरे के खेल की तारीफ करते और आराम से चाय-नाश्ता करके साइकिलों से वापस अपने गांव जाते देखा है। लेकिन फिर कोई दसेक साल का गैप आया और उस पीढ़ी के लोगों के नौकरी-चाकरी के लिए बाहर जाने के साथ ही हमारा गांव खेती-बाडी और ताश के पत्तों तक सिमटकर रह गया। इस जड़ता को तोड़ने की कोशिश हमने क्रिकेट के जरिए की। शुरुआती अड़चनों के बाद लड़कों ने बेसिक स्किल सीखे और एक कामचलाऊ टीम खड़ी हो गई। यह खेल तब अचानक पॉप्युलर हआ था सो और गांवों में भी टीमें बनने लगी थीं। हमने उनसे तीन-चार मैच लिए और सारे एकतरफा जीत गए। फिर आई तगड़ी टीमों की बारी। खासकर बाजार वाली टीम की, जिसमें नजदीकी स्कूलों-कॉलेजों के कई अच्छे खिलाड़ी भी शामिल थे। जल्द ही हमें पता चला कि बढ़िया टीमों का सामना करने की हमारी औकात नहीं है। पहला मैच हम बच्चों की तरह हार गए। तब शहर से आए हमारी टीम के कोच-कसान ने हमें खेल का महामंत्र बताया। यह कि हम सिर्फ उन्हीं मैचों में अंत तक खेलेंगे, जिनमें जीतने की हालत में होंगे। बाकियों में कोई बहाना खोजकर झगडा कर लेंगे या अंपायरों को बेईमान बताकर बीच में ही मैच खत्म कर देंगे। इस रणनीति का नतीजा यह रहा कि वॉलिबॉल की तरह किसी टीम से हारकर भी उसे चाय-नाश्ता कराकर भेजने की तो बात ही दूर, कोई भी मैच मजे लेकर खेलना हमारे अजेंडे से हट गया। 'गांव की नाक नहीं कटनी गयागाव का नाक नहीं कटना चाहिए'- इस घोषित प्रतिज्ञा ने हमारे गांव में स्पोर्ट्स कल्चर का कुछ यूं बंटाधार किया कि हम सभी खेलों के नतीजों को लेकर झूठ बोलने के आदी हो गए। ब्लॉक स्तर के एक स्पोटर्स कॉम्पिटिशन में हमारे यहां से आठ लोग शामिल हए और इवेंट जीतने का तो सवाल ही नहीं कोई किसी के फाइनल में भी नहीं पहुंचा। ऐसे में बुद्धओं की तरह घर लौटने के बजाय हमने आपस में ही किसी को 800 मीटर का गोल्ड, ड, किसी को कुश्ती का सिल्वर बांट दिया और गांव में यह गप इतनी सफाई से चलाई कि किसी को शक भी नहीं हुआ। ऐसे प्रपंचों का नतीजा क्या बताना? खेल हमारे गांव से फिर उठ ही गए
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