कविता - चलो हम त्याग दंभ,आगे हाथ बढ़ाते है
विशाल , समाजसेवी
कविता
चलो हम त्याग दंभ,आगे हाथ बढ़ाते है
चलो हम सद्भाव का दिया जलाते है।
मन की कड़वाहट छोड़ कर
अपनों से नाता जोड़ कर
आगे कदम बढ़ाते है
चलो हम सद्भाव का दिया जलाते है।।
सबके प्रति सम्मान कर
हर पंथ का रखते मान कर
ज्योत से ज्योत लगाते है
चलो हम सद्भाव का दिया जलाते है।।
पुरानी बातें भूलकर
नफरतो की दीवारें तोड़कर
हर आंगन में फूल खिलते है
चलो हम सद्भाव का दिया जलाते है।।
कथनी को करनी कर
लोभ को त्याग कर
रंज भुला आमोद अपनाते है
चलो हम सद्भाव का दिया जलाते है।।
मन में दृढ़ प्रतिज्ञा कर
भारत का जय घोष कर
इस मिटटी का तिलक लगाते है
चलो हम सद्भाव का दिया जलाते है।।
चलो हम त्याग दंभ,आगे हाथ बढ़ाते है
चलो हम सद्भाव का दिया जलाते है।।।
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