वर्क लोड से हर समय परेशानी, ये है बर्न आउट की निशानी

वर्क लोड से हर समय हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज (आईसीडी) की लिस्ट में बर्न आउट यानी वर्क लोड के प्रेशर से उपजी थकान को भी शामिल कर लिया है। इस लिस्ट में शामिल होने के बाद अब बर्न आउट बीमारियों की श्रेणी में आ गया है। अत्यधिक काम का प्रेशर किसी कर्मचारी को ऊर्जा विहीन, असहज करता है और वह थकान महसूस करने लगता है। धीरेधीरे यह थकान उसकी ऊर्जा को नष्ट करते हुए स्ट्रेस बढ़ाती जाती है जिससे स्वभाव में तब्दीली आने लगती है। व्यक्ति अपने को असहाय, दुविधाग्रस्त और बोझ तले दबा हुआ महसूस करता है। धीरे-धीरे नकारात्मकता, अकेलापन, उदासी, आक्रोश आदि पांव पसारने लगते हैं। इसके अलावा काम के दौरान ऊर्जावान महसूस न करना, काम करने के लिए मन से प्रेरित नहीं होना भी इस बीमारी के लक्षणों में शामिल हैं। मोटे तौर पर यही स्थिति बर्न आउट कहलाती है। यूं भी कह सकते हैं कि आप भावनात्मक, मानसिक, शारीरिक- किसी भी प्रकार की थकान महसूस करते हैं तो यह बर्न आउट का संकेत है। ऐसी समस्याएं उन लोगों में अधिक पाई जाती हैं जो काम होने को लत बना लेते हैं या जिन पर अधिक काम करने का दबाव लगातार बनाए रखा जाता है। निजी कंपनियों, कॉल सेंटरों आदि से जुड़े कार्यस्थलों पर अक्सर ऐसे मामले देखने में आते हैं। बर्न आउट स्वास्थ्य के लिए तब और खतरनाक बन जाता करते है जब इसके शिकार लोग इससे बचाव और उपचार की सही करता गाइडलाइन के अभाव में अस्वास्थ्यकर आदतें - ड्रिंकिंग, स्मोकिंग आदि अपनाने लगते हैं। इससे दूसरी समस्याएं पैदा होने लगती हैं। कुल मिलाकर काम के बोझ का तनाव आपके संपूर्ण शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। एक सर्वे के मुताबिक 50 फीसदी लोग कार्यस्थल पर काम के बोझ के कारण थकान और दबाव के चलते तनाव महसूस करते हैं। यह तनाव मानसिक स्थिति को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। लेकिन आमतौर पर ऐसी स्थिति को सामान्य माना कि पेटा जाता रहा है। इस वजह से इसे अनदेखा करने की प्रवृत्ति रही है। ज्यादा समय तक काम करने, देर रात तक जगने आदि के कारण अनिद्रा, उदासी, थकावट, छोटी-छोटी बात पर गुस्सा और चिड़चिड़ापन होता है और हम समझते हैं कि ऑफिस के वर्कलोड से ऐसा होना स्वाभाविक है। ध्यान रखने की बात है कि अगर इस समस्या को समय रहते डॉक्टरी सलाह द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है तो यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। डब्ल्यूएचओ की यह रिपोर्ट कई मायनों में महत्वपूर्ण है। आज विभिन्न व्यावसायिक और सरकारी कार्यालयों में लाखों कर्मचारी दिन रात वर्क लोड के बोझ से दबे काम कर रहे हैं। उनके लिए स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना बेहद जरूरी है। उन्हें इससे बचाने के लिए गाइड लाइन की जरूरत है। कार्यालयों को हेल्थ फ्रेंडली बनाए जाने की भी जरूरत है। व्यक्तिगत तौर पर ऐसी समस्याओं से बचने का उपाय यह है कि काम को आनंद के साथ किया जाए। काम को बोझ के रूप में न लेने और एक समय में सीमा से अधिक काम न करने पर बर्नआउट से ग्रस्त होने की आशंका नहीं रहती। इसके अलावा योग, प्राणायाम, ध्यान आदि के जरिए स्फूर्ति और आत्मविश्वास में इजाफा करके भी बर्न आउट से बचा जा सकता है। सबसे प्रभावी उपाय यह है कि काम देते वक्त उच्च अधिकारी इस बात का ध्यान रखें कि कर्मचारी को वह काम मजबूरी में तो नहीं करना पड़ रहा। कर्मचारियों से सीधा संवाद और जुड़ाव स्थापित करने पर भी काम होना चाहिए। यह स्थापित तथ्य है कि दबाव में काम करने के बजाय अगर खुले मन से काम किया जाए तो कार्यक्षमता अधिक रहती है। इन सबके बावजूद अगर तनाव अधिक हो तो डॉक्टर की सलाह लेने में कोई संकोच करने की जरूरत नहीं है, खासकर अब जब डब्ल्यूएचओ ने इसे बाकायदा बीमारी करार दिया है। कामाद और है कि दर


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