कैंडल मार्च की प्रथा ने समाज को नपुंसक और कायर बनाकर रख दिया


 


जीतू दुबे

ग्राम बीड़, जिला खंडवा, मध्यप्रदेश

 


देशभर के कोने-कोने से आए दिन दुष्कर्म और उसके पश्चात दुष्कर्म से पीड़ित महिलाओं, युवतियों और अल्पायु अबोध बालिकाओं की निर्दयतापूर्वक हत्या जैसे घृणित कृत्यों के समाचार मिलते रहते है । इस प्रकार के घटित समस्त प्रकरणों में कुछ तो इतने वीभत्स होते है जिनका बखान भी नही किया जा सकता । कभी-कभी मन मे ऐसी घटनाओं को सुनने के पश्चात कई प्रश्न उमड़ने लगते है, जैसे क्या हम वास्तव में एक सभ्य समाज में निवासरत है ? क्या हम मानसिक रूप से एकदम स्वस्थ लोगों के बीच रहते है ? क्या हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र है कहीं भी कभी भी आने जाने के लिए और क्या हमारा सामाजिक वातावरण सुरक्षित है ? हाल ही में घटित दुष्कर्म और हत्या की एक ऐसी हृदयविदारक घटना जिसने देशभर के लोगों को झकझोर कर रख दिया । तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद में पशु चिकित्सक 27 वर्षीय युवती डॉ. प्रियंका रेड्डी का योजनाबद्ध तरीके से चार दुष्कर्मियों ने मिलकर सामुहिक दुष्कर्म किया और फिर निर्दयतापूर्वक युवती को जलाकर उसकी हत्या कर दी, जिसके बाद परिजनों को युवती का शव अधजली गंभीर अवस्था में मिला था । उक्त घटना से पीड़ित मृतक युवती के परिजनों का बुरा हाल है, वह परिवार ही जानता है कि उन पर इस समय क्या बीत रही है ।

 

उक्त घटना से देशभर के जनमानस में आक्रोश व्याप्त है, किन्तु मुझे समझ नही आता कि देश के जनमानस का यह कैसा आक्रोश है,जो निर्भया कांड, आसिफा, ट्विंकल शर्मा और मंदसौर रेप कांड जैसे असंख्य घृणित घटनाओं के पश्चात बार-बार उमड़ता है और जितने वेग से यह आक्रोश उमड़ता है उतने ही वेग से संध्याकाल के स्याह अंधेरे में किसी नुक्कड़ अथवा चौराहे पर कुछ मोमबत्तीयां जलाने और मौन धारण किए हाथों में थामकर चलने के पश्चात शांत हो जाता है । देश के सभ्य समाज मे जिस दिन से इस प्रकार के प्रकरणों में बढ़ौतरी हुई, उसी दिन से देश मे एक ऐसी प्रथा का भी जन्म हुआ जिसने हमारे समाज को नपुंसक व कायर बना कर रख दिया, जिसे हम लोग कैंडल मार्च के नाम से भी जानते है । कैंडल मार्च क्या है ? जनसमूह द्वारा किसी दुखद अथवा राष्ट्र या समाज विरोधी घटना के विरुद्ध प्रतिक्रिया एवं प्रतिरोधस्वरूप सायंकाल अंधेरा होने पर सड़क पर जलती हुई मोमबत्ती  हाथों में लेकर किया जाने वाला पैदल मार्च या आंदोलन। हाल ही में दुष्कर्म का लक्ष्य बनी युवती के लिए भी देशभर में कैंडल मार्च निकालकर उसे और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने का दुर्बल प्रयास देशभर के जनमानस के द्वारा किया जा रहा है,और यह पहली बार भी नही है जब ऐसा मार्च निकाला जा रहा हो । क्या वास्तव में कैंडल मार्च की यह नवीन परंपरा किसी दुष्कर्म और हत्या जैसे गंभीर प्रकरण में न्याय दिलाने हेतु एक सक्षम प्रक्रिया है ? यदि ऐसा होता तो देशभर के कोने-कोने से इस प्रकार की घटनाओं के समाचार आना कभी का थम चुका होता और प्रत्येक दुष्कर्मी मौत के घाट उतार दिया गया होता । कैंडल मार्च एक ऐसी परम्परा का रूप धारण करती जा रही है जो समाज के भीतर की धधकती ज्वाला पर शीतल जल डालने और उस ज्वाला को शांत करने का कार्य करती है, और ऐसा करने मात्र से ही परिवर्तन नही होगा, हमे आत्ममंथन करने की आवश्यकता है कि देशभर के सामाजिक वातावरण को अचानक से ये क्या हुआ है ? जिस देश मे कभी नारी के सम्मान और लाज की रक्षा हेतु महाभारत जैसे महायुद्ध हुए, जहाँ नारी को शक्ति की संज्ञा से पुकारा गया, जहाँ नारी को परम सम्माननीय व पूजनीय माना गया उसी देवभूमि भारत में आज एक नारी का सांस लेना भी दूभर हो गया है । वर्तमान में प्रत्येक पिता को स्वयं की बेटी की सुरक्षा को लेकर चिंता होने लगी है चारों दिशाओं में एक अपरिचित भय का वातावरण निर्मित है । ऐसी घटनाओं के प्रति जिम्मेदार कौन है ? शासन,प्रशासन, कानून व्यवस्था या फिर हमारे देश का संविधान जो देश की नारियों की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने में समर्थ नही है, या फिर कैंडल मार्च की दुर्बल प्रथा जो किसी भी प्रकार का परिवर्तन नही ला सकती है ? चाहे कारण जो भी हो किन्तु हमें वर्तमान में समाज के वैचारिक परिवेश के शुद्धिकरण हेतु देश की आने वाली पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के ज्ञान और संस्कारों से परिचित व अवगत कराने और कानून व्यवस्था के अंतर्गत एक ऐसे ठोस कानून की आवश्यकता है जिससे इस प्रकार के प्रकरणों में त्वरित कार्यवाही और दोषी अपराधी को मृत्युदंड का प्रावधान हो । समाज को आवश्यकता है कि वह मोमबत्ती और कैंडल मार्च की दुर्बल प्रथा के प्रपंच से मुक्त होकर पूरे बल और ऊर्जा के साथ ऐसी कानून व्यवस्था की मांग करें और तब तक इस आक्रोश को शांत न होने दे जब तक शासन ऐसा कानून देशभर में लागू करने को विवश न हो जाए और हमारी बेटियां निर्भय होकर स्वतंत्रता से एक सुरक्षित सामाजिक वातावरण में सांस ले सकें ।

 

 

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