श्रीमद्भागवत कथा: चावल से कैसे सुदामा हो गये दो लोक के मालिक ?
- नेवरी हाटपुरा बायपास पर सात दिवसीय सुनाई जा रही श्रीमद्भागवत कथा
- श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन पं.राज कृष्ण शास्त्री ने दिये प्रेरणादायी संदेश
- सच्ची मित्रता के लिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण
- कृष्ण-सुदामा मित्रता के भजनों पर भक्तजन हुए भाव विभोर
सुरेश कछावा, नेवरी । भागवत कथा सुनने से पुण्य की प्राप्ति होती है। भागवत कथा भक्त और भगवान की कथा है। भक्ति मार्ग और उससे मिलने वाले पुण्य फल मनुष्य को धर्म, आस्था और आध्यात्मिकता से जोड़ते हैं। इस युग मे मानव जीवन के मोल पहचान कर प्रभु के चरणों में समर्पित कर देने से उसका कल्याण निश्चित होगा। यह उक्त प्रेरणादाई संदेश ग्राम नेवरी हाटपुरा बायपास पर साथ दिवसीय सुनाई जा रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवे अंतिम दिन पं. राज कृष्ण शास्त्री ने कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं से कहीं। और बताया की श्रीकृष्ण को सत्य के नाम से पुकारा गया। जहां सत्य हो वहीं भगवान का जन्म होता है। भगवान के गुणगान श्रवण करने से तृष्णा समाप्त हो जाती है। और कहा कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां हैं। यही कारण है कि आज भी सच्ची मित्रता के लिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण दिया जाता है। कृष्ण सुदामा प्रसंग के बारे में समझाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा अच्छे मित्र थे। गोकुल में वह एक साथ खेलकर बड़े हुए। बाद में पाप का अंत करने के लिए भगवान मथुरा आ गए। वहां पर उन्होंने कंस का संहार किया। कृष्ण के मथुरा जाने के बाद सुदामा के घर काफी गरीबी आ गई। स्थित यह हो गई कि उनके घर दो समय कि रोटी के लाले पड़ गए। गरीबी से तंग सुदामा की पत्नी सुशीला ने सुदामा से कहा कि तुम अपने बचपन के मित्र श्रीकृष्ण से मिलो, वह मदद कर सकते हैं। पत्नी के कहने पर सुदामा बचपन के मित्र से मिलने के लिए तैयार हुए। तभी जाते समय सुशीला से सुदामा को चावल दिया और कहा कि इसे भेंट में श्रीकृष्ण को देना। जब सुदामा मथुरा पहुंच कर द्वार पाल के माध्यम से सूचना दिया तो भगवान दौड़कर सखा सुदामा से गले मिले। वहां पर उपस्थित लोग आश्चर्य चकित हो गए। सुदामा का भगवान श्रीकृष्ण से स्वागत सत्कार किया। श्री कृष्ण ने पूछा की भाभी ने हमारे लिए कुछ भेजा है। तब सुदामा ने चावल दे दिए। भगवान ने उस चावल में से दो मुट्ठी चावल खाया तो सुदामा दो लोक के मालिक हो गए। जब उन्होंने तीसरी मुट्ठी में चावल लिया तो रुक्मणि ने रोक दिया। प्रभु यदि आपने यह चावल खाया तो एक लोक जो बचा हुआ है, उसके मालिक भी सुदामा हो जाएंगे और देवता कहां जाएंगे। कहा कि लोगों को भगवान श्रीकृष्ण व सुदामा की मित्रता से सीख लेनी चाहिए। इस अवसर पर भजन अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो...दर पे सुदामा गरीब आ गया है...,भटकते भटकते ना जाने कहाँ से, तुम्हारे महल के करीब आ गया हैं...,ना सर पे हैं पगड़ी, ना तन पे हैं जामा बतादो कन्हिया को नाम है सुदामा...,सुनते ही दोड़े चले आये मोहन लगाया गले से सुदामा को मोहन भजन पर भक्तजन भाव विभोर हो गए। इस तरह श्री कृष्ण के जयकारों के साथ पांडाल गुंजायमय हो गया। इस मौके पर कथा के अंतिम दिन बड़ी संख्या में भक्तजन शामिल हुए। कथा समापन अवसर पर भक्तजनों द्वारा गांव व घर परिवार में सुख शांति के लिए पंडित राज कृष्ण शास्त्री से आशीर्वाद लिया
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