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भागें नहीं, राह निकालें

केंद्र और राज्यों के चुनाव एकसाथ कराने को लेकर राजनीतिक नेतृत्व में आम सहमति तो क्या, व्यापक संवाद भी अभी नहीं बन पा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को 'एक देश, एक चुनाव' पर चर्चा के लिए सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई जिसमें जेडीयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल, बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती, वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी और सीपीआई के डी राजा ने हिस्सा लिया। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, डीएमके, टीडीपी और टीएमसी की इस बैठक से गैरहाजिरी यह बताती है कि विपक्ष इस मामले में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। बहरहाल, लगभग लगातार चुनाव हमारे सिस्टम का एक अहम मसला है जिसे फौरी राजनीति से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए। अरसे से महसूस किया जा रहा है कि हमारी चुनाव प्रणाली में कुछ बुनियादी बीमारियां घर कर गई हैं। चुनावों का आलम यह है कि दो-चार महीने भी ऐसे नहीं गुजरते जब देश चुनावी मोड में न दिखता हो। लोकसभा चुना

ईस्टर पर चिथड़े-चिथड़े मानवता

इंसान से अधिक असभ्य, क्रूर, डरावना और हिंसक प्राणि इस धरती पर दूसरा कोई नहीं है, जिसे दूसरे इंसानों की जान लेने में कोई झिझक नहीं होती। यह बात एक बार फिर साबित हो गई। रविवार को ईस्टर था, पूरी दुनिया में ईसाई धर्मावलंबी प्रभु यीशु के फिर से जिंदा होने के इस त्योहार को आस्था और खुशी के साथ मना रहे थे। कहा जाता है कि गुड फ्राइडे के दिन यानि जब ईसा मसीह को अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के लिए कट्टर लोगों ने सूली पर चढाया, तब ईसा मसीह ने उनके लिए प्रार्थना करते हुए कहा था, हे ईश्वर! इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। लेकिन आज चारों ओर जिस तरह का खून-खराबा और हिंसक खेल खेला जा रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि जो लोग ये हिंसा कर रहे हैं, वे अच्छे से जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं और उन्हें न किसी धर्म की परवाह है, न किसी ईश्वर का डर। बल्कि वे तो इंसानों के बीच डर के कारोबार को बढ़ाने में लगे हैंजितना अधिक ये डर बढेगा, उतना ज्यादा दुनिया में उनका वर्चस्व बढ़ेगा। तभी तो कभी किसी संगीत के जलसे में बम धमाका होता है. कभी स्कल में मासम बच्चों पर गोलियां चलाई जाती हैं, कभ

सतत विकास के लिए एक स्वस्थ आबादी जरूरी

  भारत में मूलभूत अनुसंधान उस स्थिति में पहुंच चुका है, जहां वह विकास की चुनौती के बावजूद सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार समाधान विकसित कर सकता है। अकादमिक शोध में कम से कम तीन संभावित मलेरिया वैक्सीन तैयार हुए हैं, जबकि एक भारतीय कंपनी (भारत बायोटेक) द्वारा हाल ही में डब्ल्यूएचओ प्रीक्वालिफाइड टाइफाइड वैक्सीन विकसित किया गया है। अलबत्ता, आश्चर्य की बात तो यह है कि इस डब्ल्यूएचओ प्रीक्वालिफाइड टाइफाइड वैक्सीन की रोकथाम-क्षमता का डैटा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में नियत्रित मानव संक्रमण मॉडल का उपयोग करके हासिल किया गया है। इसका कारण यह हो सकता है कि भारत में नैदानिक परीक्षण व्यवस्था कमजोर और जटिल है। आज विज्ञान इस स्तर तक पहुंच चुका है कि मलेरिया और टाइफाइड जैसी संक्रामक बीमारियों का इलाज मानक दवाइयों के नियमानुसार सेवन से किया जा सकता है। हालाकि भारत में अतिसंवेदनशील आबादी तक अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में अभी भी मलेरिया के कारण मौतें हो रही हैं। एक अप्रभावी उपचार क्रम एंटीबायोटिक-रोधी किस्मों को जन्म दे सकता है। यह आगे चलकर देश की जटिल स्वास्थ्य सम्बंधी चुनौतियों को और बढ़ा देगा। भारत

कौन बनेगा सांसद पर असमंजस बरकरार, टिकिट के लिए घमासान जारी   

 ( मोहन वर्मा ) देवास शाजापुर सीट से इस बार सांसद का ताज किसके सर पर रहेगा ये रहस्य अभी तक बरकरार है और साथ ही टिकिट के लिए दावेदारों में घमासान जारी है । लोकसभा चुनावों में देवास शाजापुर सीट से अभी तक दोनों ही दलों ने अपने उम्मीदवार तय नहीं किये है । हालाँकि देवास में सातवें चरण का मतदान 19 मई को होना है मगर दोनों ही दलों में किसी एक नाम पर अब तक आम सहमती नही बन पा रही है ।  यों तो कांग्रेस से कबीर गायक प्रहलादसिंह टिपानिया का नाम सबसे उपर चल रहा है मगर गुटबाजी में उलझी कांग्रेस में इस नाम पर आम सहमती नही है। यों तो चर्चाओं के अनुसार दिग्विजयसिंह के खाते से टिपानिया का नाम लगभग फायनल सा है क्योकि बीच में सज्जनसिंह वर्मा के पुत्र पवन वर्मा के नाम की चर्चा थी मगर उसपर पूर्णविराम सा लग गया है । भाजपा से सूरज कैरो, प्रेमचंद गुड्डू तथा चिंतामन मालवीय से लेकर मनीष सोलंकी, महेंद्र मालवीय, सुरेन्द्र वर्मा और राजेन्द्र वर्मा का नाम है और हर कोई अपने अपने स्तर पर भोपाल से लेकर दिल्ली तक अपनी दावेदारी मजबूत कराते फिर रहे है, मगर स्थानीय भाजपा का रूझान इनमे से किसी भी नाम के प्रति नही है। अगर स्थ

लड़कियों पर अत्याचार का धर्म

पाकिस्तान में दो हिंदू लडकियों को अगवा करके शादी करने और जबरन धर्म परिवर्तन कराने की खबर इस वक्त भारत में सुर्खियों में बनी हुई है। खासकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के इस मामले में दखल देने से चर्चा और तेज हो गई है। विदेश मंत्री ने पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त से इस मामले में रिपोर्ट मांगी। जिस पर पाकिस्तान के सूचना मंत्री चौधरी फ़वाद हुसैन ने सुषमा स्वराज को लिखा कि यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला है और हमारे लिए अल्पसंख्यक भी उतने ही अनमोल हैं। इसके बाद दोनों देशों के मंत्रियों के बीच ट्विटर पर कुछ और कड़वी बातें हुईं। मोदी का न्यू इंडिया बनाम इमरान का नया पाकिस्तान का तुलनात्मक अध्ययन शुरु हो गया है। अच्छी बात यह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पंजाब और सिंध की सरकार को साथ मिलकर लड़कियों की तलाश का आदेश दिया है। इससे पहले पाकिस्तान के कानून की धारा 365 बी (अपहरण. जबरन शादी के लिए महिला का अपहरण). 395 (डकैती के लिए सजा), 452 (चोट पहचाने. मारपीट, अनधिकत रूप से दबाने के उद्देश्य से घर में अनाधिकार प्रवेश) के तहत पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी है। यानी कानून अपना का

अपनी बात- नफरत से लड़ते हुए

यह सुखद है कि सदियों के संघर्ष के बाद अर्जित मानव मूल्यों पर जब भी किसी कोने से कोई गंभीर हमला होता है, तो उसके खिलाफ उसी खित्ते के लोग मुखरता के साथ खड़े होने लगे हैं। इस लिहाज से फेसबुक ने श्वेत राष्ट्रवाद यानी 'व्हाइट नेशनलिज्म' की पैरोकारी वाली हर तरह की कार्रवाई को प्रतिबंधित करने का जो फैसला किया है, वह भले जनभावना के दबाव में उठाया गया कदम हो, इसकी सराहना की जानी चाहिए। पिछले दिनों इसी नस्लवादी विचारधारा से प्रेरित हत्यारे ने क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में करीब 50 नमाजियों के नरसंहार का सीधा प्रसारण करके दनिया को दहला दिया था। तभी से सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों पर नफरत भरी कार्रवाइयों को हतोत्साहित करने का दबाव बढ़ गया है। बताने की जरूरत नहीं कि फेसबुक के साथ ट्विटर, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब पर ऐसी सामग्रियों की भरमार है, जो समाज में घृणा के जहर घोलने का काम कर रही हैं। निस्संदेह, सोशल मीडिया के इन मंचों की लोकप्रियता या यूएसपी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इनके अरबों-खरबों के __ कारोबार का यही आधार है। मगर दिक्कत यह है कि यह बेलगाम आजादी अब गंभीर अंतर्विरोधों को जन्म देने

कश्मीर समस्या के लिए अमेरिका और ब्रिटेन जिम्मेदार

नेहरू ने बार-बार कहा कि वे किसी हालत में इन साम्राज्यवादी ताकतों के दबाव में नहीं आएंगे न अगले वर्ष और ना ही भविष्य में कभी। इस बीच एक ऐसी घटना हुई जिसकी कल्पना कम से कम जवाहरलाल नेहरू ने नहीं की थी। वर्ष 1962 के अक्टूबर में चीन ने भारत पर हमलामाध्यमों अपनी की । सामाजिक संवेदनशील लिए अमेरिका इसके पूरी आम फेसबुक इसका -ट्विटर उम्मीदवारों बनकर लड़ने खर्च फेसबुक सबको कर दिया। चीनी हमले के बाद अमेरिका व ब्रिटेन ने भारत को नाममात्र की ही सहायता दी और वह भी इस शर्त के साथ कि भारत कश्मीर समस्या हल कर ले। अमेरिका के सवेरोल हैरीमेन और ब्रिटेन के डनकन सेन्डर्स दिल्ली आए। दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने चीनी हमले की चर्चा कम की और कश्मीर की ज्यादा। भारत की मुसीबत का लाभ उठाते हुए अमेरिका ने मांग की कि भारत में वाइस ऑफ अमेरिका का ट्रांसमीटर स्थापित करने की अनुमति दी जाए और सोवियत संघ से की गई संधि को तोड़ दिया जाए। कुल मिलाकर अमेरिका और ब्रिटेन ने कश्मीर के प्रश्न पर भारत का साथ न देकर पाकिस्तान का साथ दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी सहित संपूर्ण संघ परिवार जवाहरलाल नेहरू को

होली में यादें-यादों में होली

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होली हमारी सतरंगी संस्कृति का एक मस्तीभरा त्यौहार है । आती फरवरी में वासंती हवाओं के संग और जाती फरवरी और मार्च में फिर फागुनी बयार के संग बौराए झूमते मन को शब्दों में बाँधना कई बार कठिन लगता है । इधर खेतों में लहराती पीली पीली सरसों,पेड़ों पर बौराते आम,मन को मोहते टेसू-पलाश,खेतों मे हवाओं संग झूमते सोने सी गेंहू की सुनहरी बालियों संग रंगबिरंगी प्रकृति पत्थरदिलों को भी खिलने को और खिलखिलाने को मजबूर कर देती है। __आज के बदलते समय में यों ही हर त्यौहार अपना मूल स्वरूप खोता जा रहा है और उसपर पानी बचाने.पर्यावरण को सहेजने,सूखे रंगों से होली खेलने जैसे संदेशों के बीच अब होली कब हो ली पता ही नही चलता। टीवी-मोबाईल, में जकड़ा कथित अभिजात्य वर्ग तो बच्चों के इम्तहान पास त्यौहार से दूर होता जा ही रहा है आमजन में र भी त्योहार कालानी आता आज के समय में मोबाईल फेसबकवाटसअप से भेजे जाने वाले होली के शभकामना संदेशों के साथ रंगबिरंगी टुमेजेस ही त्यौहार का पर्याय हो चली है। अब तो बस होली में यादें और यादों में होली बाकी नजर आती है। यादों के झरोखे से देखें तो आज से चार दशक पहले तक मस्ती के इस त्यौहार का इ

किसकी चौकीदारी?

News Source : Media Reports राहुल गांधी को कुछ न मानने वाली भाजपा ने इस बार अपना चुनावी नारा उनके उठाए मुद्दे पर ही तैयार किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद को कई बार देश का चौकीदार कहते रहे हैं। इस पर रफाएल सौदे में भ्रष्टाचार का जिक्र करते हए राहल गांधी ने नारा दिया कि चौकीदार चोर है। उनकी रैलियों में ये नारा बहत गूंजता है और अब तो हालत ये है कि राहल गांधी केवल चौकीदार बोलें तो जनता की ओर से जवाब आता है-चोर है। इस नारे और उस पर जनता की प्रतिक्रिया से भाजपा ऐसे परेशान हई कि मोदी है तो मुमकिन है, जैसे नारे को छोडकर मैं भी चौकीदार पर उतर आई। प्रधानमंत्री ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर नाम के आगे चौकीदार जोडा, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत कई मंत्रियों और नेताओं ने उनका अनुसरण किया। कुछ मंत्रियों ने चौकीदार नहीं लिखा, तो सवाल उठने लगे कि क्या भाजपा की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में ये साथ नहीं हैं? एम.जे.अकबर और बी एस येदियुरप्पा ने चौकीदार विशेषण साथ में जोड़ा, उनका मजाक भी बना। इस तरह सरकार चुनने जैसे गंभीर काम में एक बार फिर सस्ती जुमलेबाजी ने अधिक जगह घेर ली और मुद्दों के लिए क

वैश्विक आतंकवाद पर कब साफ होगी नीति और नीयत

  चीन के इस फैसले के बाद भारत में बेहद गुस्सा है। इस पर राजनीति भी शुरु हो गयी है। लेकिन इस तरह के मसलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। प्राथमिकता में पहले राष्ट्र है फिर राजनीति है। कहा जा रहा है कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर उसे सबक सिखाया जाए। क्योकि चीन के व्यापारिक हित को जब नुकसान पहुंचेगा तो उसकी नींद खुलेगीफिलहाल इस नीति से चीन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि भारत चीन को सिर्फ 20 हजार करोड़ का सामान निर्यात करता है यानी कुल व्यापार का यह चार फीसदी है जबकि चीन का कुल निर्यात 16 फीसदी है। ___ वैश्विक आतंकवाद पर दुनिया कितनी संजीदा है इसका अंदाजा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन की चालों से चल गया है। परिषद के स्थायी स्दस्य देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस को ठेंगा दिखाते हुए चालबाज चीन ने यह बता दिया ___कि ग्लोबल आतंकवाद पर दुनिया के आंसू सिर्फ घड़ियाली हैं, जमीनी हकीकत दूसरी है। चीन चौथी बार वीटो का इस्तेमाल करते हुए भारत की कूटनीति पर पानी फेर दिया। भारत और उसका मित्र राष्ट्र अमेरिका चाह कर भी पाकिस्तानी आतंकी एंव जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक अजहर मसूद को अ

एक पैगाम युवा शक्ति के नाम

मेरी पूरी श्रद्धा ह ताश का भर पर विश्वास है या नहीं प्रभु ने कहा तरी मरे प पूरी आपने सुना होगा एक बार एक भक्तों ने भगवान से प्रश्न किया प्रभु तेरे इसमें मेरी पूरी श्रद्धा है तुझ को मेरे पर विश्वास है या नहीं प्रभु ने कहा तेरी मेरे पे पूरी श्रद्धा होती तो तू यह प्रश्न ही नहीं करता हमें युवा शक्ति पर पूरा विश्वास है इसीलिए हमने मन की बात कह रहे हैं जहां भी आप जैसे युवा साथियों की जमात खड़ी होती है जानते हो सब की दृष्टि उधर क्यों चली जाती आपके समूह को देखने वालों को उस विराट स्वरूप का बोध होता है जो सृष्टि रचना के पांच तत्वों में छुपा पड़ा है समुद्र में तूफान वायु में आनी अग्नि में दावानल मिट्टी में सहनशीलता एवं आकाश में तेज सभी कुछ तो है आपके अंदर आप अपनी इन महान शक्तियों को पहचाने और मर्यादा में रहकर इन का सही उपयोग करें किसी भी महापुरुष की जीवनी में उन्होंने जीवन में क्या किया है इसी का कितना रहता है औरों के भले के लिए क्या किया इसी का उल्लेख रहा है कोई व्यक्ति सिर्फ अपना एवं परिवार का ही निर्वाह करता रहे उसे परिवार वाले भी स्मरण नहीं करते राणा प्रताप के चेतक का नाम आप जानते हैं जो आप

देवास शाजापुर चुनावों में किस करवट बैठेगा ऊंट

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अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए घमासान शुरू हो चुका है। एक एक सीट पर सोच विचार कर दमदार उम्मीदवारों के सहारे दूसरी बार फिर से केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनाने की कवायद के चलते एक और जहाँ भाजपा, उम्मीदवारों के चयन में पूरी सावधानी बरत रही है वहीं कांग्रेस भी पिछले विधानसभा चुनावों में जीत के उत्साह को लेकर केंद्र में काबिज होने की तेयारी में लग गई है। देवास शाजापुर लोकसभा सीट मालवांचल में विशेष महत्व की मानी जाती है। यहाँ के सांसद भाजपा के मनोहर ऊंटवाल ने विधानसभा चुनावों में त्यागपत्र देकर आगर से विधानसभा चुनाव लड़ा और विजयी रहे। इसके पूर्व यहाँ से कांग्रेस के सज्जन सिंह वर्मा सांसद रहे है जो अब सोनकच्छ से विधायक बन कर प्रदेश में केबिनेट मंत्री है। इस बार ये सीट दोनों ही दलों के निशाने पर है। भाजपा एक बार फिर A A यहाँ अपना परचम फहराना चाहती है तो कांग्रेस किसी भी कीमत पर वापस ये सीट जीना चाहती हैदेवास शाजापर की इस आरक्षित सीट पाक ओर जहां भाजपा की और सेप सांसद थावरचंद गहलोत. अजा नेता सरज करो पर्व विधायक राजेंट वर्मा मरेन्ट वर्मा और कमल अहिरवार के नाम सामने आने लगे ह

अयोध्या विवाद में मध्यस्थता की राह

news Source : Media Reports क्या मध्यस्थता के रास्ते यह उद्देश्य हासिल किया जा सकेगा? जवाब में कुछ लोग सवाल करते हैं कि क्या आस्था व विश्वास के नाम पर भड़काये गये सारे विवादों में इस प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है? भारत जैसे देश में, जिसमें अनगिनत आस्थाएं और विश्वास विद्यमान है, ऐसी प्रक्रियाएं कठिनाइयों को दूर करने में सहायक होंगी या आस्थाओं व विश्वासों को महत्व देने की प्रवृत्ति से राजनीति के साम्प्रदायीकरण का ही विस्तार होगा? क्या कुछ लोग इसे अपनी आस्थाओं की विजय मानकर इसका अनुचित लाभ उठाकर पूरी राजनीति में ही साम्प्रदायिकता को निर्णायक बनाने का प्रयत्न नहीं करेंगे? ऐसा हुआ तो सविधान में दिये गये सारे उद्देश्य ही निरर्थक हो जायेंगे। यदि यह पंचनिर्णय नहीं बल्कि मध्यस्थता माना जाय तब तो अन्त में निर्णय न्यायालय को ही करना होगा। __ अयोध्या विवाद की सुनवाई कर रही सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने विवाद के स्थायी समाधान% के लिए अपनी निगरानी में ऑन कैमरा लेकिन गोपनीय मध्यस्थता का रास्ता अपनाने का फैसला किया है। इसके लिए उसने सेवानिवृत्त जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता में मध्

पुलवामा घटना :देशवासियों के सब्र का बांध तोड़ दिया

- प्रमोद भार्गव भारत वही गलतियां दोहराता रहा है, जो उसने पानीपत से लेकर अब तक लडी हैं। दरअसल भारत की इस रक्षात्मक नीति ने जीत से ज्यादा हार का ही सामना किया है। लिहाजा 2016 में पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकी शिविरों पर जो हमला बोला था, उनका सिलसिला पाक की जमीन पर जारी रखना होगा। जरूरत पड़े तो 1971 की लड़ाई की तरह पाक से सीधी लड़ाई भी लड़नी होगी। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमने उसे दोहराने की बजाय उसका उत्सव मनाने में ज्यादा समय गुजारा। इसी का परिणाम है कि पाक प्रायोजित हमलों का सिलसिला टूट नहीं रहा है। उरी हमले के तीन साल बाद कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने फिर कहर बरपाते हए सीआरपीएफ के 37 जवानों के प्राण हर लिए। यह आत्मघाती हमला कश्मीर के ही आतंकी नागरिक आदिल अहमद डार ने किया है। हमला एक कार में करीब 300 किलो विस्फोटक लेकर जवानों से भरी बस से टकराकर किया गया। हमला दिन दहाड़े श्रीनगर राजमार्ग पर पुलवामा जिले के लेथपोरा कस्बे के पास किया गया। हमले के बाद तैनात आतंकियों ने सेना के काफिले पर हमला भी किया। जिस आदिल ने इस घटना को अंजाम द

हाईवे विस्तार में सावधानियां अपनाई जाएं

आज चीन की यातायात तेज करने वाली परियोजनाएं भी बहुत महंगी हैं। बीजिंग-शंघाई हाई स्पीड लाईन की अनुमानित लागत इस समय 30 अरब डालर है। शंघाई के बीच में से गुजरने वाली एक अन्य तेज (मगलेव) रेल लाईन का बहुत विरोध यहां के नगरवासी इस आधार पर करते रहे कि इस अति तेज रफ्तार की रेल लाईन का उपयोग मात्र कुछ पर्यटक ही करेंगे, जबकि इससे नागरिकों के लिए बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होंगी। जहां यातायात तेज करने के नाम पर अरबों डालर के हाईवे बनाए जा रहे हैं, वहां सड़क-शुल्क वसूल करने के लिए जो टोल-बूथ बनाए जाते हैं उनसे यातायात की रफ्तार कम भी होती है। इस शुल्क का भार बहुत बढ़ जाता है तो ट्रक व लारी ओवरलोड करने लगते हैं व इससे दुर्घटनाएं बहुत बढ़ जाती हैं। भारत भी बड़े हाईवे, एक्सप्रेस वे आदि के निर्माण के दौर से गुजर रहा है। कई हाईवे को बहुत जरूरत न होने पर भी किसी व्यापक योजना के अन्तर्गत चौड़ा किया जा रहा है। भारत सहित अनेक देशों के विकास कार्यक्रमों में नए हाईवे बनाने व पहले के हाईवे को और चौड़ा करने को उच्च प्राथमिकता दी गई है और इसे तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। पर इसके जमीनी स्तर पर क्या असर हो रहे हैं

नेता नहीं, सजेता चाहिए

विनोद पटेल (मुंदी, खंडवा)/ जनसमूह को गृहस्थ के झंझट मे इतना अवकाश नही रहता कि वे अपने सामाजिक जीवन का संचालन कर सके। यह कार्य समूचे समाज की ओर से उसका एक अग्रणी या नेता करता है। वह अपने स्वभाव सिद्ध गुणो से तथा अपने मे उपयोगिता के कारण पूजनीय होता है वास्तव मे वह गणपति होता है, पर गणपति बनने के लिए, गणानां त्वा गणपति होने के लिए उसमे कई गुणो का समुच्चय होना चाहिए। नेता बड़ा पुराना शब्द है, किंतु जिस समय यह शब्द बना था उस समय पुरोहित ही नेता होता था। आज तो हर गली कूँचे मे, जिस कंकड़ पत्थर को उठा लीजिए वही नेता होगा। वर्षा मे मेढकों की बाढ आती है, प्रजातंत्र मे नेताओ की बाढ़ आ गई हमारे देश मे स्वराज्य हो गया , पर हम स्वराज्य का सुख नही भोग पाते है इसका कारण है कि हमारा नेता हमको चैन से नही बैठने देता। जहाँ समस्या नही है वहाँ कोई न कोई समस्या उत्पन्न कर देगा। यदि हम लेश मात्र भी सुख की सॉस लेना चाहेगें तो वह नई नई उलझने पैदा कर देगा। देश तथा समाज का उत्थान नेता पर निर्भर करता है। नेता यदि पथभ्रष्ट हुआ देश भी पतन की ओर अग्रसर हो जाता है, इसलिए और किसी विचार से नही अपनी रक्षा के विचार से ही

एक सप्ताह की सड़क सुरक्षा से कैसे रुकेंगे हादसे - अपनी बात

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इस खतरनाक और भयावह सच्चाई को स्वीकारते हुए कि दुनिया में हमारे देश में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती है और इन हादसों में कितने ही लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है दुर्घटनाओं पर नियंत्रण कर पाना सहज नही हो पाता। सड़क सुरक्षा और उसकी जागरूकता के लिए काम करने वाली संस्थाओं के साथ साथ खरिक्षा सप्ताह मनाया जात सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भी प्रतिवर्ष सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है मगर ये एक खानापूर्ति से अधिक कुछ नजर नही आता । अगर आंकड़ों की जुबानी देखे तो प्रतिवर्ष 1.5 लाख के अधिक लोग सडक हादसों में अपनी जान गवां देते है ।सडक हादसों के कारणों की पड़ताल की जाये तो मोटे रूप में वाहन चालकों का अपशिक्षित होना शराब पीकर वाहन चलाना,वाहन में क्षमता से अधिक सामान या सवारियों का होना,वाहन का जोगास होना, नाबालिक बच्चों द्वारा वाहन चलाना, और मोबाईल का उपयोग करते हुए वाहन चलाना,बिना हेलमेट दोपहिया वाहन चलाना और वाहन चालन के समय दिमागी तनाव आमतौर पर दुर्घटनाओं का कारण बनता है। प्रदेश के साथ शहर में भी इस बार 30 वाँ राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा 4 फरवरी से मनाया जा रहा है ज

जलप्रबंधन गंभीर चुनौती

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जलप्रबंधन मेरा अभिमत है कि सार्मथ्यशील समुदाय द्वारा ग्रामीण विकास जरूरी है, भारत के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए हमें सक्रिय होकर संबंधित मुद्दों और चुनौतियों का हल करना चाहिए। यदि विकास के सामूहिक प्रयासों का सरकार और लोगों के बीच में क्रियान्वित किया जाए तो गंभीर बदलाव की संभावनाएँ है। भारतीय संविधान का 73वां संशोधन जिसे 1993 में पास किया गया, वह हर ग्राम को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित विकास की योजना बनाने के लिये आदेश देता है। ग्यारहवीं सूची जमीन, पानी, सिंचाई और सामाजिक क्षेत्र की गतिविधियों- जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य पर प्रकाश डालती है। राज्य को पंचायतों को सीधे आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी है। यह आवश्यक कि लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी समस्याओं और उनके संभावित बेहतर हल की समझ रखें। भारत में जल संचयन अनंतकाल से किया जाता रहा है। इस परम्परा के प्रमाण प्राचीन लेखों, शिलालेखों और स्थानीय रीतिरिवाजों तथा पुरातात्विक अवशेषों में मिलते हैं। कौटिल्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र में विभाग प्रमुखों के कार्य नामक अध्याय में कहा है-%%उसे प्राकृतिक जल स्त्रोत या कहीं और से

छले जाने हेतु अभिशप्त हैं किसान

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राजू पाण्डेय अर्थव्यवस्थाओं के आकलन की वर्तमान विधियों के अनुसार कृषि क्षेत्र की जीडीपी में घटती हिस्सेदारी विकसित अर्थव्यवस्था का द्योतक है। यह कहा जाता है कि ऐसा नहीं है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कृषि क्षेत्र का विकास अवरुद्ध हो जाता है बल्कि उद्योग, निर्माण और सेवा क्षेत्र में तीव्र गति से उन्नति होने के कारण कृषि क्षेत्र की भागीदारी जीडीपी में कम हो जाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी जीडीपी में 50 प्रतिशत थी जो वर्तमान में घटकर 17.32 प्रतिशत रह गई है। जबकि अब औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 29.02 प्रतिशत है। आज जीडीपी में सर्वाधिक 53.66 प्रतिशत योगदान सेवा क्षेत्र का है। आर्थिक विकास के इस मॉडल को कृषि और ग्रामीण विकास विरोधी तथा बेरोजगारी बढ़ाने वाला कहने का साहस हममें से शायद किसी के पास नहीं जब से हिंदी पट्टी के तीन राज्यों-छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सत्ता परिवर्तन हुआ है और इसके लिए किसानों में व्याप्त असंतोष तथा गुस्से को एक प्रमुख कारण माना गया है तब से किसानों की समस्याओं के प्रति राजनीतिक दल न केवल गंभीर हुए हैं बल्कि पहली बार किसान

राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं

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कहा जाता है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नही होता । देवास के नगर निगम आयुक्त विशालसिंह चौहान भी अंततः राजनीति की भेंट चढ़ ही गये । कांग्रेस नेताओं की आँख की किरकिरी बन रहे चौहान की देवास निगम से तुरंत निगम स तुरत बिदाई का आदेश आया है । मिली जानकारी के अनुसार भोपाल में आहूत मुख्यमंत्री के साथ कांग्रेस नेताओं की बैठक में शिकायत के बाद मुख्यमंत्री के आदेश के बाद चौहान की देवास से रवानगी हो गई है और उन्हें भोपाल में सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थ किया गया है। चौहान लम्बे समय से कांग्रेसी नेताओं के निशाने पर थे और इस बिदाई को देवास में कांग्रेस के पर्व महापौर जयसिंह ठाकर से उनके कछ माह पहले हुए विवाद से भी जोड़ा जा रहा है जिसके चलते आयुक्त द्वारा जयसिंह ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की नौबत आई थी । सिंहस्थ में उनकी पदस्थापना के समय कथित रूप से भ्रष्टाचार की शिकायतों की भी चर्चा सामने आई है । हालांकि चौहान की शैली हालांकि चौहान की शैली से वे लोग तो नाखुश थे जिनके हित प्रभावित हो रहे थे मगर शहर में उनके काम करने के तरीके और शहर की सूरत बदलने के उनके अथक प्रयासों की तारीफ करने वाले भी कम