पुलवामा घटना :देशवासियों के सब्र का बांध तोड़ दिया

- प्रमोद भार्गव


भारत वही गलतियां दोहराता रहा है, जो उसने पानीपत से लेकर अब तक लडी हैं। दरअसल भारत की इस रक्षात्मक नीति ने जीत से ज्यादा हार का ही सामना किया है। लिहाजा 2016 में पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकी शिविरों पर जो हमला बोला था, उनका सिलसिला पाक की जमीन पर जारी रखना होगा। जरूरत पड़े तो 1971 की लड़ाई की तरह पाक से सीधी लड़ाई भी लड़नी होगी। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमने उसे दोहराने की बजाय उसका उत्सव मनाने में ज्यादा समय गुजारा। इसी का परिणाम है कि पाक प्रायोजित हमलों का सिलसिला टूट नहीं रहा है। उरी हमले के तीन साल बाद कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने फिर कहर बरपाते हए सीआरपीएफ के 37 जवानों के प्राण हर लिए। यह आत्मघाती हमला कश्मीर के ही आतंकी नागरिक आदिल अहमद डार ने किया है। हमला एक कार में करीब 300 किलो विस्फोटक लेकर जवानों से भरी बस से टकराकर किया गया। हमला दिन दहाड़े श्रीनगर राजमार्ग पर पुलवामा जिले के लेथपोरा कस्बे के पास किया गया। हमले के बाद तैनात आतंकियों ने सेना के काफिले पर हमला भी किया। जिस आदिल ने इस घटना को अंजाम दिया है, वह पलवामा के काकपोरा क्षेत्र का रहने वाला है। यह 2018 में जैश में शामिल हआ था। जैश के अफजल गरु स्क्वॉड का भी नाम हमले में सामने आया है। यह अफजल गुरु वही है, जिसके अवशेष महबूबा मुफ्ती मांग रही हैं। जिससे उसके अवशेष कश्मीर की इस्लाम धर्मावलंबी आबादी में घुमाकर लोकसभा चुनाव में राजनीतिक रोटियां सेंकी जा सकें? विडंबना देखिए कि महबूबा जैसे लोग अपनी सुरक्षा के लिए संरक्षण तो सुरक्षाबलों का लेते हैं, लेकिन पैरवी राष्ट्रविरोधी आतंकियों की करते हैं। यह अपनी जगह ठीक है कि यह आतंकी हमला बौखलाहट से भरी कायरता का पर्याय हैं, लेकिन शोक, आक्रोश एवं दुख की इस घड़ी में केवल और केवल घाटी की इस लड़ाई को निर्णायक लड़ाई में बदलने की जरूरत है। क्योंकि हम अब तक अपनी जमीन पर लड़ाई लड़ते हुए 45000 से भी ज्यादा भारतीयों के प्राण गंवा चुके हैं और हमारे ही युवा आतंकी पाठशालाओं में प्रशिक्षित होकर बड़ी चुनौती बन गए हैं। दुर्भाग्य यह भी है कि जो अलगाववादी आतंकियों को शह देते हैं, उनकी सुरक्षा में भी सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस लगी है। अलगाववादियों के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के सबूत मिल जाने के बावजद. हमने उन्हें नजरबंद तो किया, लेकिन कडी काननी कार्रवाई से वे अब तक बचे हए हैं ? नतीजतन उनके हौसले बलंद हैं। इन हालातों से साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक फलक पर भले ही कटनीति के रंग दिखाने में सफल हों, लेकिन अपने देश की आंतरिक स्थिति को सुधारने और पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से उनकी रणनीति नाकाम ही रही है। शोपियां में सेना की पत्थरबाजों से रक्षा में चलाई गोली के बदले मेजर आदित्य कुमार पर एफआईआर दर्ज होना और उनके परिजनों द्वारा अदालत के चक्कर काटना, इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के विरुद्ध अभी तक हम कोई ठोस नीति ही नहीं बना पाए हैं। करीब 1000 पत्थरबाजों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की कार्रवाईयों ने सेना का मनोबल गिराने का काम किया है। ये दोनों कार्रवाईयां इसलिए हैरतअंगेज थीं, क्योंकि जिस पीडीपी की मुख्यमंत्री रहीं महबूबा मुफ्ती ने इस कार्यवाई को अंजाम दिया था, उस सरकार में भाजपा की भी भागीदारी थी। बावजूद राष्ट्रवाद की हुंकार भरने वाली भाजपा पीडीपी के समक्ष लाचार दिखाई दी थी। सीमा पार और सीमा के भीतर से सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमलों की सूची लगातार लंबी होती जा रही है। उरी, हंदवाड़ा, शोपियां, पुलवामा, तंगधार, कुपवाड़ा, पंपोर, श्रीनगर, सोपोर, राजौरी, बड़गाम, उरी और पठानकोट में हमलों में हमने अपने सैनिकों के रूप में बड़ी कीमत चुकाई है। पाकिस्तानी फौजियों द्वारा भारतीय सीमा के मेंढर सेक्टर में 250 मीटर अंदर घुसकर भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल के दो सैनिकों की हत्या स्तब्ध कर देने वाली घटना थी। पाक सैनिक भारतीय सैनिकों के साथ आदिम बर्बरता दिखाते हुए उनके सिर भी काटकर ले गए थे। रिश्तों में सुधार की भारत की ओर से तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि वह शांति कायम रखने और निर्धारित शतों को मानने के लिए कतई गंभीर नहीं हैं। और हम हैं कि मुंहतोड़ जवाब देने की बजाय, मुंह ताक रहे हैं?


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