जलप्रबंधन गंभीर चुनौती


जलप्रबंधन मेरा अभिमत है कि सार्मथ्यशील समुदाय द्वारा ग्रामीण विकास जरूरी है, भारत के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए हमें सक्रिय होकर संबंधित मुद्दों और चुनौतियों का हल करना चाहिए। यदि विकास के सामूहिक प्रयासों का सरकार और लोगों के बीच में क्रियान्वित किया जाए तो गंभीर बदलाव की संभावनाएँ है। भारतीय संविधान का 73वां संशोधन जिसे 1993 में पास किया गया, वह हर ग्राम को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित विकास की योजना बनाने के लिये आदेश देता है। ग्यारहवीं सूची जमीन, पानी, सिंचाई और सामाजिक क्षेत्र की गतिविधियों- जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य पर प्रकाश डालती है। राज्य को पंचायतों को सीधे आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी है। यह आवश्यक कि लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी समस्याओं और उनके संभावित बेहतर हल की समझ रखें। भारत में जल संचयन अनंतकाल से किया जाता रहा है। इस परम्परा के प्रमाण प्राचीन लेखों, शिलालेखों और स्थानीय रीतिरिवाजों तथा पुरातात्विक अवशेषों में मिलते हैं। कौटिल्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र में विभाग प्रमुखों के कार्य नामक अध्याय में कहा है-%%उसे प्राकृतिक जल स्त्रोत या कहीं और से लाये गये पानी के उपयोग से सिंचाई व्यवस्थाओं का निर्माण करना चाहिए। इन व्यवस्थाओं का निर्माण करने वालों को भूमि, अच्छा रास्ता, वृक्ष और उपकरणों आदि में सहायता करनी चाहिए। अगर कोई सिंचाई के कार्य में भाग नहीं लेता तो उसके श्रमिकों तथा बैलों आदि को उसके बदले काम पर लगाना चाहिए और उसे व्यय वहन करना चाहिए। न्यायधीशों से सम्बन्धित एक अध्याय में उन्होंने लिखा है- अगर जलाशय, नहर या पानी के जमाव के कारण किसी के खेत या बीज को क्षति पहुँचती है तो उसे क्षति के अनुपात में के संबंध में एक अध्याय में कौटिल्य ने लिखा है- %%अगर कोई उपयोग में आये पारम्परिक जल स्त्रोत का उपयोग रोकता हैया ऐसा नया जल स्त्रोत बनाता है, जिसका पारम्परिक कार्यों के लिए उपयोग न किया जा सके, तो हिंसा के जो न्यूतम दण्ड निर्धारित हैं वह उस पर लगायें जायेंगे। अगर कोई व्यक्ति स्वयं या दूसरों के माध्यम से किसी परमार्थिक जल व्यवस्था को बंधक रखता या बेचता है तो हिंसा के लिए निर्धारित न्यूनतम दण्ड उस पर लगेगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तुलनात्मक क्रमबद्ध गणना- 1994-1995 की गणना के अनुसार चीन की जनसंख्या 1,238 मिलियन (एक अरब 23 करोड़ 80 लाख) थी। भारत के 931 (93 करोड़ 10 लाख) मिलियन की तुलना में, और महाराष्ट्र की 84 मिलियन (8.4 करोड़), चीन की ग्रामीण जनसंख्या 860 मिलियन (86 करोड़) और महाराष्ट्र की 50 मिलियन (5 करोड़) चीन में भूमि की उपलब्धता प्रति परिवार केवल 0.5 हेक्टेयर, भारत की 1.3 हेक्टेयर और महाराष्ट्र 1.8 हेक्टेयर की है। सिंचाई वाले क्षेत्र का प्रतिशत देखें तो चीन ने अपनी भूमि का 50 प्रतिशत के अंदर कर लिया है। तो चीन ने अपनी भमि का 50 पतिशत के अंदर कर लिया है। बड़े मध्यम और छोटी योजनाओं और जल संचयन के द्वारा। असंतुलन महाराष्ट्र में नजर आता है जहाँ इसका केवल 16 प्रतिशत सिंचाई योग्य है। अब सालान उत्पादन को देखिए, चीन में 480 मिलियन (48 करोड़) टन, भारत में 190 एम टी (19 करोड़) और महाराष्ट्र में 14 एम टी (एक करोड़ चालीस लाख) हमारे पास जल सुरक्षा राज्यों में होने के बावजूद गन्ने का उत्पादन चीन में 8 मिलियन (अस्सी लाख) टन, 15 एम टी (एक करोड़ पचास लाख), भारत में 15 एम टी और 5 एम टी (पचास लाख) यानी कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 30 प्रतिशत महाराष्ट्र में यह 50 प्रतिशत पर जूझ रही है। मेरा अभिमत है कि सार्मथ्यशील समुदाय द्वारा ग्रामीण विकास जरूरी है, भारत के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए हमें सक्रिय होकर संबंधित मुद्दों और चुनौतियों का हल करना चाहिए। यदि विकास के सामूहिक प्रयासों का सरकार और लोगों के बीच में क्रियान्वित किया जाए तो गंभीर बदलाव की संभावनाएं है। भारतीय संविधान का 73वां संशोधन जिसे 1993 में पास किया गया, वह हर ग्राम को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित विकास की योजना बनाने के लिये आदेश देता है। ग्यारहवीं सूची जमीन, पानी, सिंचाई और सामाजिक क्षेत्र की गतिविधियों- जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य पर प्रकाश डालती है। राज्य को पंचायतों को सीधे आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी है। यह आवश्यक कि लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से अपनी समस्याओं और उनके संभावित बेहतर हल की समझ रखें। इस सार्मथ्य शक्ति को गति देने के लिये स्वैच्छिक संस्थाओं को सरकार और व्यक्तियों के बीच बातचीत स्थापित कराने में सहायता करनी चाहिए जिससे लोग अपने विकास को स्वयं कर सकें और सरकार की भूमिका उसमें कम से कम हो जाएँ। एक आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था अपनी स्वयं की जमीन एक आत्मति और जल संसाधन विकसित कर सकेगी और पुरानी कर्ज प्रणाली की जरूरत नहीं होगी।


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