जब संसार मे कीर्ति पताका लहराती है तो दुश्मन भी अनेक हो जाते है- घनश्याम दास
देवास। भगवान की कथा कभी समाप्त नहीं होती। सिर्फ विश्राम लेती है। इस कथा को सुनने से भगवान का नाम लेने से पापी भी अपने द्वारा किए गए पापों से मुक्त हो जाता है।उसका भी कल्याण हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण को पाकर ऐसे बल को पाकर रुक्मणी भी गदगद हो गई। फिर रुकमणी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण की द्वारिका में एक सुंदर बालक. प्रद्युम्न का जन्म होता है। लेकिन जब- जब संसार में कीर्ति पताका लहराती है तो दुश्मन भी अनेक हो जाते हैं। संत कहते हैं आज के इस युग में मनुष्य अपने सुख से उतना सुखी नहीं है। जितना दूसरों के सुख से दुखी। दूसरा इतना बड़ा क्यों हो गया।जैसे पड़ोसी के घर में फॉर्च्यूनर है, धन संपदा है तो ईर्ष्या होती है मन मे। जबकि हमें ऐसा नहीं करते हुए उसके लायक बनने के प्रयत्न करना चाहिए। जब भगवान श्री कृष्ण की कीर्ति पताका चारों ओर लहराने लगी, तो उनके भी दुश्मन तैयार हो गए। कुछ लोगों को दूसरों की प्रशंसा ओर कीर्ति अच्छी नहीं लगती है। यह विचार श्री राधा कृष्ण मंदिर चाणक्यपुरी में 9 मार्च से चल रही श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन बुधवार को व्यास पीठ से कथावाचक घनश्याम दास ने व्यक्त किए। उन्हों