सांस जो चल रही है वह पल दो पल की है, भोग निंद्राओं से जागों- सदगुरु मंगल नाम साहेब



भारत सागर न्यूज/देवास। घाट बना दिए हैं नदियों के किनारे और उन घाटों के नाम दे दिए है, कि ये रामघाट है कि ये फलाना घाट है। उसमें सब स्नान कर रहे हैं, लेकिन तुम अपने घाट की ओर लौटों। अपने अंदर जो अवघट घाट है, उसमें स्नान कर लिया तो फिर और किसी घाट की जरूरत नहीं पड़ती। उस घाट को सदगुरु के संवाद से ही जाना, पहचाना जा सकता है, 



इसलिए हमें घाट-बाट के भुलावे में नहीं आना है। प्राण पुरुष सब घाटों की यात्रा कर बैठा हुआ है और वह मुक्त हैं। वह सबसे मुक्त प्राणी तुम्हें भक्ति और मुक्ति की ओर ले जाता है। यह विचार सदगुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी पर आयोजित गुरु शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। 



इस दौरान सदगुरु मंगल नाम साहेब का साध संगत द्वारा नारियल भेंट कर आशीर्वचन लिया गया। उन्होंने आगे कहा कि जो हमारी सांसे चल रही है, वह पल दो पल की है। हमेशा टिकने वाली नहीं है। इन ग्रह घाट की भोग निंद्रा से जागों, जीव की सत्य चेतना और सदगुरु के प्रकाश में आ जाओ। सब अपने घाट बनाकर बैठे हैं। सब अपनी-अपनी टोपी पहन कर बैठे हैं। 



कोई हिंदू तो कोई मुसलमान बना बैठा है। लेकिन मूल तत्व जो है वह विदेही पुरुष है, वह सत्य का संदेश दे रहा है संसार से मुक्त होने का। जब तक गुरु शिष्य का संवाद नहीं होगा, तब तक संसार में मुक्ति का मार्ग नहीं मिल सकता। सदगुरु से संवाद करने पर ही सारे घाटों का अंत किया जा सकता है। सदगुरु के संवाद से ही मुक्ति का मार्ग मिलेगा। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।

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