सद्गुरु के संवाद से संसार के सारे भ्रम मिट जाते हैं- सद्गुरु मंगल नाम साहेब !



देवास। अरब खरब लो ग्रंथ है, वाणी कोटि हजार। सद्गुरु के संवाद बिन होत नहीं भव पार। अरब खरब ग्रंथ है लेकिन जब तक सदगुरु से संवाद नहीं होगा तब तक सब निष्फल ही है। सतगुरु के संवाद के बिना इस सांसारिक भवसागर को सहज रूप से पार नहीं किया जा सकता। सद्गुरु के संवाद में निर्णय होता है, निर्णय सबका हितकारी होता है। जब जीव होए शुभकारी, मनुष्य तब जीव का मालिक हो जाता है। सुख को प्राप्त कर लेता है। सद्गुरु के संवाद से अपने जीव स्वरूप को प्राप्त किया जा सकता है। जो अजर हैं, अविनाशी हैं, उम्र रहित ओर परम तत्व है। संसार के समस्त आयामों को सद्गुरु के संवाद से जाना जा सकता है। यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने  सदगुरु कबीर प्रार्थना स्थली मंगल मार्ग टेकरी पर आयोजित गुरु शिष्य संवाद में व्यक्त किए। उन्हीने आगे कहा कि दिल का दर्पण ही संसार की दुविधा को समाप्त कर सकता। वैराग्य त्याग विज्ञान से संसार के समस्त झंझटों से निदान प्राप्त कर सकते हैं। जैसे सो गए तो सपना सच  हैं, और जाग गए तो जागृति सच हैं। दोनों सत्यों को देखने वाले मनुष्य का भ्रम जागृति और निंद्रा की सीमा का अंतिम सत्य सद्गुरु के संवाद से ही है । सद्गुरु के संवाद से दिल के दर्पण की काई हट जाती है। सांसो की कोमलता से कठोर से कठोर यम को भी जीता जा सकता है। स्वांस को संयमित करने से काल और दगा मिट जाता है। कठोर यम का दंड भी टूट जाता है। पशु पक्षी मानव जितने भी शरीर है। सब शरीर सिर्फ छाया मात्र हैं। जैसे समुद्र में लहर उठती हैं और समुद्र में ही समा जाती है। ऐसे ही शरीर में जीव उगते हैं और वापस जीव में ही समा जाते हैं। क्योंकि होते तो है नहीं। लहर होती नहीं समुंद्र होता है। जिस तरह से जीव में से शरीर रूपी लहर उठती हैं और वापस वह जीव विदेही होकर जिव में ही समा जाता है। जीव ओर स्वांस पुरुष हैं। दोनों मिलकर के संसार कायम करते हैं। शरीर मैं नारियों का और कर्म इंद्रियों का विस्तार होता है। कर्म इंद्रियां जो है अपना परिचय देकर समाप्त हो जाती है। गुरु की आंखों से गुरु के संवाद से सारे भ्रम मिट जाते हैं। यह जो दिख रहा है वह भ्रम है। यह जो दिखाया गया है आंखों का विषय नहीं है। जो तुम फालतू के कामों में जो फंसे हो सत्य नहीं है। बचपन जवानी और बुढापे के मर्म के बहाव में बह जाते है। सद्गुरु के संवाद से इन बहाओ से बचकर मूल स्वरूप जीव को प्राप्त किया जा सकता। है। जीव ओर स्वांस ही पुरुष हैं जो विदेही है। जितने भी शरीर हैं सब नारी स्वरूप है।



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