निर्मम समाज में स्वच्छता सेनानियों की गुमनाम शहादत

- डॉ राजू पाण्डेय


गुजरात में वडोदरा से 30 किलोमीटर दूर डभोई तहसील के फरती कुई गांव में एक होटल के सीवर की सफाई के दौरान मैन होल में उतरे 7 लोगों की जहरीली गैस से दम घुटने के कारण मौत हो गई। मैन होल से सर्वप्रथम अंदर जाने वाले महेश पाटनवाडिया के बाहर न निकलने पर उनकी कुशलता जानने के लिए एक के बाद एक सात सहकर्मी मैन होल से अंदर प्रविष्ट हुए और 15 मिनट में सभी की मृत्यु हो गई। इनमें 4 सफाई कर्मचारी और 3 होटल कर्मी थे। यह भयंकर और हृदयविदारक घटना इस तरह की लगातार घट रही दुर्घटनाओं से जरा भी भिन्न नहीं थी। सफाई कर्मियों को बिना किसी सुरक्षा उपाय के यह कार्य करने के लिए विवश होना पड़ता था। स्थानीय प्रशासन को अनेक बार संभावित अनहोनी की आशंका से अवगत कराया गया था किंतु कोई कदम नहीं उठाया गयाअब दोषियों की गिरफ्तारी और मुआवजे की घोषणा जैसे रस्मी कदम उठाए जा रहे हैं। होटल मालिक पर जो धाराएं लगाई गई हैं वह उसके अपराध की तुलना में बहुत हल्की हैं। यदि मीडिया मामले को निरन्तर उठाता रहा तो शायद इनमें कुछ इजाफा भी हो जाएगा। किन्तु जैसा अब तक होता रहा है सीवर सफाई करने वाले कर्मचारियों को निर्ममतापूर्वक मौत के मुंह में धकेलने वाले धनकुबेर और उनके कारिंदे लंबी न्यायालयीन प्रक्रिया के बाद या तो बेगुनाह छूट जाएंगे या इन्हें नाम मात्र का दंड मिलेगा। गुजरात सरकार ने मृतकों की जान की कीमत 4 लाख रुपए आंकी है जैसा गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी की एक घोषणा से पता चलता है। शायद गुजरात राज्य सामाजिक न्याय विभाग द्वारा 8.25 लाख प्रति परिवार मुआवजा और दिया जाएगा। गुजरात सफाई कर्मचारी संघ की ओर से 2 लाख रुपए की मदद का आश्वासन दिया गया है। मृतक सफाई कर्मियों के शोक संतप्त, हतप्रभ और भयाक्रांत परिजनों को हमेशा की तरह यह समझाने की पुरजोर कोशिश की जा रही होगी कि जो मिल रहा है वह मृतकों की हैसियत से बहुत ज्यादा है। मनुष्य द्वारा हाथ से मैला सफाई का यह अमानवीय कारोबार इन सफाई कर्मियों और उनके परिवार के सदस्यों को अंदर से इतना कमजोर, हताश और पराजित बना देता है कि कोई आश्चर्य नहीं यदि इन मृतकों के परिजन भी मुआवजा मिलने को ही अपना परम सौभाग्य मान लें और दोषियों के साधन संपन्न सहयोगियों के समक्ष शरणागत हो जाएं। धीरे धीरे सब कुछ पुराने ढर्रे पर चल निकलेगा और इस तरह की घटनाओं की निर्लज्ज पुनरावृत्ति होती रहेगीएनसीएसके के आंकड़े बताते कि सीवर सफाई के दौरान हुई मृत्यु के आंकड़ों में गुजरात देश तामिलनाडु के बाद दूसरे नंबर पर है। गुजरात प्रधानमंत्री का गृह राज्य है और विकास के बहुचर्चित गुजरात मॉडल की प्रयोग स्थली भी। प्रधानमंत्री का बहुप्रचारित स्वच्छता अभियान महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित बताया जाता है जो स्वयं इस अमानवीय प्रथा से असहमत और आहत रहे। किन्तु इसके बाद भी गुजरात का यह शर्मनाक रिकॉर्ड गहरी चिंता उत्पन्न करता है। यह दर्शाता है कि सरकार की प्राथमिकताओं में शायद ये सफाई कर्मी सम्मिलित नहीं । मैला सफाई के इस कार्य के विषय में आरक्षण पर कोई विवाद नहीं है। वाल्मीकि समुदाय के लोग इस कार्य के संपादन के लिए अभिशप्त हैं। उच्चतर वर्गों के लोग वाल्मीकि समुदाय के इस पेशे पर एकाधिकार को कभी चुनौती नहीं देते। आरक्षण का विमर्श इस पेशे से दूरी बना लेता है। चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान हर धर्म में मैला सफाई के लिए कुछ खास जातियां इस कार्य को करने के लिए चिह्नित की गई हैं जिन्हें नारकीय दशाओं में यह कार्य करना पड़ता है क्योंकि समाज उन्हें इस दलदल से निकलने नहीं देता। इस पेशे को छोड़ना भी आसान नहीं है। यहां तक कि जब वाल्मीकि समुदाय के लोग महानगरों की ओर पलायन करते हैं तब भी इन्हें अन्य कार्यों से दूर रखा जाता है और इन्हें मैला सफाई के कार्य से आमरण आबद्ध रखा जाता है। इस कार्य को इतना घृणित माना जाता है कि ऐसे अनेक श्रमिक अपने परिवार तक से यह तथ्य छिपा कर रखते हैं कि वे सीवर सफाई का कार्य करते हैं। ऐसे में कई बार सीवर सफाई के दौरान इनकी मौत की खबर इनके परिजनों को भी हतप्रभ और चकित छोड़ जाती है। इन मैला सफाई करने वाले श्रमिकों के प्रति प्रशासन तंत्र की उदासीनता चिंतित करने वाली है। सरकार ने मैला सफाई करने वाले श्रमिकों की संख्या और उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति के संबंध में कोई भी सर्वेक्षण नहीं कराया है। लोकसभा में 4 अगस्त 2015 को एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में सरकार द्वारा यह जानकारी दी गई कि 2011 की जनगणना के आंकड़े यह बताते हैं कि देश के ग्रामीण इलाकों में 180657 परिवार मैला सफाई का कार्य कर रहे थे। इनमें से सर्वाधिक 63713 परिवार महाराष्ट्र में थे। इसके बाद मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, त्रिपुरा तथा कर्नाटक का नंबर आता है। यह संख्या इन परिवारों द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में हाथ से मैला सफाई के 794000 मामले सामने आए हैं। सीवर लाइन सफाई के दौरान होने वाली मौतों के विषय में राज्य सरकारें केंद्र को कोई सूचना नहीं देतीं। 2017 में 6 राज्यों ने केवल 268 मौतों की जानकारी केंद्र के साथ साझा की। सरकारी सर्वे के अनुसार तो 13 राज्यों में केवल 13657 सफाई कर्मी हैं।


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