मप्र में पहली बार डॉ. सुरभि और सुपर्णा ने दी कुचिपुड़ी की मनमोहक प्रस्तुति

धुंघरू नृत्य अकादमी की बालिकाओं ने प्रस्तुत किया कथक नृत्य


भाषायी विविधता के साथ भावाभिव्यक्ति ने मोहा मन



• भारत सागर, देवास कला और संगीत को खुद में समेटकर संजोकर रखने वाले मल्हार स्मृति मंदिर सभागार में रविवार की रात शास्त्रीय नृत्य का माधुर्य लिए उतरीकुचिपुड़ी के रूप में तेलगु की भाव और भाषायी विविधता परिलक्षित हुई तो कथक के रूप में नृत्य की कलात्मकता बिखरी। मुद्राओं का माधुर्य बिखर रहा था और अदाओं की कलाबाजियां लुभा रही थी। कभी गोपियों और श्रीकृष्ण की रासलीला के रूप में तो कभी शिव तांडव के रूप में...। दरअसल शहर की 104 वर्ष पुरानी संस्था श्री शिव छत्रपति गणेश मंडल द्वारा गणेशोत्सव कार्यक्रम के तहत रविवार को शास्त्रीय नृत्य का आयोजन किया गया। हैदराबाद से आई सुविख्यात नृत्यांगना डॉ. सुरभि लक्ष्मी शारदा ने कुचिपुड़ी की सुंदर प्रस्तुति दी। भाषायी विविधता के साथ भावों को समेटे कुचिपुड़ी की खूबसूरती से सभागार गुलज़ार हो गया। शुरुआत गणेश वंदना से की। आंगन नर्तन गणपति... के बोलों के साथ प्रथम पूज्य श्री गणेश की वंदना नृत्य से अभिव्यक्त की। इसके बाद शिव तांडव स्तोत्र के माध्यम से देवाधिदेव महादेव के स्वरूप को दर्शाया। डॉ. सुरभि के साथ आई उनकी शिष्या सुपर्णा ने मनमोहक मुद्राओं से भावाभिव्यक्ति की। महालक्ष्मी वंदना से देवी के स्वरूप को दर्शाया तो कृष्णम कलय सखि सुंदरम...की प्रस्तुति से श्रीकृष्ण-गोपियों की रासलीला को मनमोहक स्वरूप में नृत्य में पिरोया। सुपर्णा की मुद्राएं और भाव कुचिपुड़ी के उस माधुर्य की झलक दिखा रहे थे जिसके लिए यह जाना जाता है। नृत्य तो था ही लेकि नाट्य भी झलक रहा था जिसे देख दर्शक अभिवादन और उत्साहवर्धन कर रहे थे। आयोजन समिति की ओर से डॉ. सुरभि का स्मृति चिह्न देकर सम्मान किया गया। बरसों बाद शहर में कुचिपुड़ी नृत्य हुआ। सभागार में मौजूद कई लोग ऐसे थे जिन्होंने पहली बार इस नृत्य को देखा। डॉ. सुरभि अपनी शिष्या के साथ खुद पहली बार ही मप्र में आई है। देवास में कथक नर्तक प्रफुल्ल गेहलोत के आग्रह पर उन्होंने अपनी प्रस्तुति दी। भाषायी मर्यादा में बंधे इस नृत्य की खासियत यह है कि इसमें नृत्य के साथ नाट्य का समावेश रहता है। मुद्राओं की कलात्मकता, नयनों के भाव एक ऐसा वातावरण सृजित करते हैं जिससे दर्शक कुचिपुड़ी में खो जाते हैं। आकर्षक परिधान इस नृत्य को और सुंदर बनाते हैं। नृत्य में पात्र उतरता है और वह अपने भावों से बंदिशों के माध्यम से पूरी कथा कहता है। तेलगु भाषा की क्लिष्टता के बावजूद इसका सौदर्य मन को लुभाता है और बीच-बीच में तालों के बोल, संस्कृत के श्लोक इसे और परिष्कृत कर सुंदर बनाते हैं। ___ कुचिपुड़ी के बाद कथक नृत्य हुआ। शहर की धुंघरू नृत्य अकादमी के बच्चों ने कथक प्रस्तुत किया। गुरु प्रफुल्ल गेहलोत से तालीम ले रहे कथक नर्तकों ने अपनी प्रतिभा को नृत्य में पिरोकर दर्शकों के सम्मुख रखा। सबसे पहले गणेश वंदना हुई। हे गजवदन वक्रतुंड महाकाय... पर भाव्या, अनन्या, भाविका, समष्टि, चिन्मयी, खुशी, गीतिक्षा ने सुंदर प्रस्तुति दी। लता मंगेशकर द्वारा स्वरबद्ध सरस्वती वंदना हे माता सरस्वती शारदा...विदुषी, गीतांजलि, प्रियम, गीत, तिथि, वैष्णवी ने प्रस्तुत की। शिव स्तोत्र को आंगिकम नृत्य के माध्यम से स्तुति, प्रणीधि, पलाक्षी, जाह्नवी, तनिष्का, सौम्या, हिमाक्षी ने प्रस्तुत किया। जपलीन कौर, भाविका, भाव्या, आन्या ने कृष्ण वंदना प्रस्तुत की। आखिर में तराना हुआ। मराठी गीत पर रुपल बेलापुरकर, अनुष्का जोशी, कृतिका बिंजवा, मुस्कान गोस्वामी ने कथक की प्रस्तुति दी। ताल पक्ष को तीन ताल में अचता आहूजा, ईशानी शर्मा, अचशा जोशी ने प्रस्तुत किया। तोड़े प्रस्तुत किए।


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