मेरी कलम मुझे इजाज़त नही देती हर कुकृत्य पर



     विशाल राण्डवा

 

मेरी कलम मुझे इजाज़त नही देती

हर कुकृत्य पर

पीड़ित महिला की पीड़ा को बताना।

हर घटना को अलग शब्द

हर अनहोनी को नया रूप

जिसे पढ़कर फिर किसी को रुलाना।

सच बताऊँ,मेरी कलम मुझे इजाज़त नही देती।।

हर कुकृत्य पर

पीड़ित महिला की पीड़ा को बताना।

उस शहर की उस गली में

जँहा जमुरियत अंधी हो

जिसमे इंसानियत का भाव नही।

जो तहजीब को करती शर्मिदा हो।

सच बताऊँ,मेरी कलम मुझे इजाज़त नही देती।।

हर कुकृत्य पर

पीड़ित महिला की पीड़ा को बताना।

हर बच्ची सहमी सी

हर लड़की डरी सी

हर महिला की आँखों में आँसू है।

बेबसी की दाशता सुनाता ये आलम

जिस पर हर इंसान शर्मिदा है।।

सच बताऊँ,मेरी कलम मुझे इजाज़त नही देती।।

हर कुकृत्य पर

पीड़ित महिला की पीड़ा को बताना।।


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