उत्तराखण्ड - खलिया टॉप और ज़ीरो पॉइंट् का अविस्मरणीय ट्रैकिंग
भारत सागर न्यूज/( मोहन वर्मा-देवास ) । इस बात से कोई इन्कार नहीँ कर सकता कि पर्यटन-यात्राएं हमें उत्साह और ऊर्जा से तो भरती ही है देश विदेश की अनदेखी जगहों को देखने का, विभिन्न लोगों से मुलाकात का और नई जगहों की संस्कृति को देखने समझने का अवसर भी देती है ।
अपनी यायावरी के चलते अमरनाथ,बद्रीनाथ,गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, हिमाचल प्रदेश,लेह-लद्दाख, सिक्किम के अलावा इधर राजस्थान,महाराष्ट्र की कई जगहों के अलावा सुदूर विदेश में बैंकाक और कनाडा को भी नापने का अवसर मिलता रहा ।
इधर कुछ समय से एक यात्रा समूह "युथ हॉस्टल" से जुड़ने के बाद फ़रवरी में जैसलमेर राजस्थान के अब तक अनदेखे सांस्कृतिक महाउत्सव का आनंद लेने का अवसर मिला तो इस बार ट्रैकिंग के लिये प्रसिद्ध उत्तराखंड के मुन्शीयारी क्षैत्र के खलिया टॉप और ज़ीरो पॉइंट् में ट्रैकिंग का आनंद लिया। समूह के सदस्यों के 15-15 लोगों के 05 बैच के देश केविभिन्न क्षेत्रों के 75 से अधिक पर्यटकों ने इस बार 10 से 18 मई तक खलिया टॉप और ज़ीरो पॉइंट् में ट्रैकिंग का अविस्मरणीय अनुभव बटोरा।
उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षैत्र में काठगोदाम से 300 किलोमीटर उपर मुन्शीयारी के ट्रैकिंग बेल्ट में खलिया टॉप और ज़ीरो पॉइंट् 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जहाँ की ट्रैकिंग के लिये पर्यटकों को ईको पॉइंट में तंबुओं में रात गुजारने के बाद पहली चढ़ाई यौ तो तीन किलोमीटर की ही करनी थी जो भुजानी कैंप तक पहुँचने के लिये थी मगर इस तीन किलोमीटर की खडी चढ़ाई में ही तीन से चार घंटे लगे क्योंकि चढ़ाई खड़ी थी ।
यों तो मुन्शीयारी ईको पॉइंट के बैस कैंप में पहुँचते ही 3-4 डिग्री तापमान की तेज़ ठंडी हवाओ ने हमारा स्वागत इस तरह किया कि हम मालवा के 40 डिग्री तापमान को भूल गए और सबसे पहले सिर पर मफलर लपेटा और गर्म जैकेट बदन पर डाली । कैंप में रात तंबू में गुजरी । दूसरे दिन एक आसपास छोटा ट्रैक किया और मुन्शीयारी घूमने निकले,जहाँ माता मंदिर और संग्रहालय में सहेजी हुई कुमाऊँ संस्कृति की धरोहरों से रूबरू हुए । पहाड़ों में अचानक आई तेज बारिश और औलो के बीच वापस अपने कैंप के
लिये भागे क्योंकि यहाँ मौसम कब बेवफ़ा हो जाये कहा नहीँ जा सकता ।
तीसरे दिन सुबह नौ बजे समूह ने भुजानी कैंप तक तीन किलोमीटर की चढ़ाई की ट्रैकिंग शुरू की और एक बजे गंतव्य पर पहुँचे जहाँ पहुँचते ही पहाड़ों की तेज ठंडक ने स्वागत किया । शाम होते होते 3-4 डिग्री की ठंडी हवाओं के बीच फिर तंबुओं में रात गुजरी। चौथे दिन सुबह सात बजे खलिया टॉप और जीरो पॉइंट की कठिन चढ़ाई शुरू हुई । हालांकि मंज़िल 2.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर ही थी मगर खड़ी चढ़ाई चढ़ कर जब मंजिल पर पहुँचे तो आनंद आ गया क्योंकि आसपास से नजर आते ग्लैशियर और हिमाच्छादित आसमान ने थकान होने ही नहीँ दी
जीरो पॉइंट् पर तिरंगा फहरा कर और राष्ट्र वंदना कर वापस भुजानी कैंप में समय रहते लौट आए
क्योंकि बारिश ने और बदलते मौसम ने असर दिखाना शुरू कर दिया था । कुल जमा 13500 फीट ऊँचे इस ट्रैक को करना एक अविस्मरणीय अनुभव रहा । वाकई उत्तराखण्ड की पहाडियों के बीच प्रकृति से रूबरू होना ऊर्जा से तो भर ही देता है,मगर हिमालय दर्शन,हिमाच्छादित आसमान, 35-40 डिग्री तापमान से निकल कर आए मनक को ऐसी ठंडक से भर देते है कि पर्यटक पहाडी ठंडक के साथ जेहन में खुशनुमा यादें लेकर लौटता है जैसे हम लौटे...
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