मनुष्य जाति का महान गुरु एवं सच्चा हितैषी ऋषि दयानन्द सरस्वती
परमात्मा ने 1.96 अरब वर्ष पूर्व इस संसार को बनाया था और तब से इसे चला रहा है। वह कभी सोता व आराम नहीं करता। यदि करता होता तो बहुत पहले इस संसार की प्रलय हो जाती। वह यह सब त्याग व पुरुषार्थ स्वाभाविक रूप से संसार के प्राणियों के लिये करता है। परोपकार का यह सबसे बड़ा उदाहरण है। इस संसार में अनादि व अमर जीवात्मायें मनुष्यों सहित अनेक प्राणी योनियों में जन्म लेती और मृत्यु को प्राप्त होती रहती है। हमारा यह जन्म क्यों हुआ, हमें क्या करना है, मनुष्य जीवन का सदुपयोग कैसे किया जा सकता आदि अनेक प्रश्न हैं जिनका समुचित व सन्तोषजनक उत्तर हमें संसार में प्रचलित शिक्षा सहित मत-मतान्तरों के ग्रन्थों में प्राप्त नहीं होता। ऋषि दयानन्द के जन्म के समय भी देश की यही स्थिति थी। देश अविद्या, अन्धविश्वासों, अमानवीय सामाजिक कुरीतियों सहित अनेक प्रकार के दोषों से युक्त था। हिन्दू जाति अंग्रेजों की गुलाम बनी हुई थी। इससे पूर्व देश के अनेक भागों पर मुसलमानों ने भी राज किया था और देश की हिन्दू जनता के प्रति अन्याय व शोषण सहित उस पर अनेकानेक अत्याचार किये थे। इसका कारण देश की आर्य हिन्दू जाति में अज्ञानता व...