जो भीतर के घाट की परख कर लेता है, उसे बाहरी घाट की जरूरत नहीं पड़ती- सतगुरू मंगल नाम साहेब




भारत सागर न्यूज/देवास। हमारे घट के भीतर ही चांद सूरज और नौ लख तारा। हीरा मोती  सब समाए हुए हैं, लेकिन हमें परख नहीं है। जो अंतर घट की परख कर लेता वह भव बंधन से मुक्त हो जाता है। जो भीतर के घाट की परख कर लेता है उसे फिर बाहरी घाट की जरूरत नहीं पड़ती। यह विचार सतगुरू मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु-शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। 




उन्होंने कहा, कि पूरा संसार एक बूंद में समाया हुआ है। आकाश से जो पानी बरसता है वह समुद्र में समा गया। सब जानते है, लेकिन समुद्र समान बूंद में जाने बिरला कोई। वीर्य की एक बूंद में पूरा कायानगर रूपी समुद्र समाया हुआ है। जिसमें हाथ पैर कान, नाक, आंख, सिर, पैर सब समाहित है। इनकी उपज कैसे हुई। इस काया नगर की उपज का मूल सिर्फ वीर्य की एक बूंद है। हम इस काया नगर के घाट पर नहीं नहा रहे हैं। उस घाट की हमें कोई खबर नहीं है। दूर-दूर जाकर बाहरी घाटों पर नहा रहे हैं। और यूं ही सारा जीवन घाट घाट पर भटकते हुए व्यर्थ गंवा देते हैं। 




जो अंतर घट की पहचान कर लेता है, परख कर लेता है उसका जीवन धन्य हो जाता है। उस अंतर घाट की पहचान हमें सतगुरू की शरण में जाने, उनके वाणी विचारों को आत्मसात करने से ही होगी। आगे कहा कि जिस घट से तुम बहकर आए हो वही घाट तुम्हारा उद्धार करेगा। इस दौरान सतगुरू मंगलनाम साहब के सानिध्य में चौका आरती नितिन साहेब एवं नीरज साहब द्वारा संपन्न कराई गई। साध संगत द्वारा सतगुरू मंगलनाम साहेब को नारियल भेंट कर आशीर्वचन लिए। यह जानकारी सेवक वीरेंद्र चौहान ने दी।

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