चमत्कार को नमस्कार करने उमड़ेगा आस्था का जनसैलाब..





शाजापुर/अवन्तिपुर बड़ोदिया/रायसिंह मालवीय/7828750941 - एक ओर जहां रंगपंचमी पर पूरे देश में रंग गुलाल की बौछारें उड़ेगी वही दूसरी ओर बाबा गरीबनाथ की नगरी अवन्तिपुर बड़ोदिया में हजारों लाखों भक्तगण श्रद्धा, आस्था एवं भक्ति के सागर में गोते लगा रहे होंगे...




  प्रसंग है रंगपंचमी के अवसर पर सन्त श्री गरीबनाथजी महाराज के समाधि स्थल पर बाबा के सागौन की लकड़ी से बने 85 फुट ऊंचे स्मृति ध्वज को चढ़ाने का.. मान्यता है कि बाबा की समाधि स्थल के गड्ढे में पिछले वर्ष हजारो की संख्या में डाले नारियल, पान एवं साबूत नमक के गड़े अगले वर्ष खुदाई के पश्चात यथावत निकलते हैं जो आज के इस वैज्ञानिक युग में किसी चमत्कार से कम नहीं..

   *कौन थे बाबा गरीबनाथ..?*-- बाबा गरीबनाथ जी का जन्म कब और कहाँ हुआ यह तो अज्ञात है किंतु बताया जाता है कि प्राचीन दुर्लभ लेखों के अनुसार बाबा गरीबनाथजी संवत 1248 में झाँसी के जूना मठ से तीर्थ यात्रा को निकले और बड़ोदिया में नेवज नदी किनारे सुरम्य स्थान देख कुटिया बनाकर "माँ लालबाई फूलबाई" की सेवा करते हुए यही रहने लगे.. उन्होंने अपने आश्रम में स्वयं माँ अन्नपूर्णा, गणेश जी एवं शिवलिंग की स्थापना कर अपने तप एवं दैविक शक्तियों से अनेक चमत्कार एवं दीन दुखियों की सेवा में यही रम गए.. एक दिन बाबा ने सभी ग्रामवासियों को बुलाकर अकस्मात जीवित समाधि लेने की इच्छा प्रकट की और संवत 1344 में चैत्र बिदी पंचमी को एक उत्सव के रूप में समाधि कार्यक्रम सम्पन्न हुआ.. कुछ माह पश्चात सावन मास संवत 1345 में गाँव के पटेल व तीर्थयात्रि उत्तर प्रदेश के सोंरो जी मे गंगा स्नान कर रहे थे तब एकाएक बाबा ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए ,जब बाबा गरीबनाथजी को आग्रहपूर्वक पुनः बड़ोदिया चलने को कहा गया तो उन्होंने कहा कि मेरा वहां का कार्यकाल बस इतना ही था फिर भी सभी ने उन्हें हठपूर्वक डोली में बैठा दिया किंतु लश्कर के आसपास अन्तर्ध्यान हो गए और एक पत्र छोड़ गये जिसमें समाधि उत्सव का सम्पूर्ण विधान लिखा था.. तभी से प्रतिवर्ष रंगपंचमी के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन यहाँ होता है..


उत्सव विधि एवं मेला आयोजन...



    सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त में तड़के 4 बजे बाबा के समाधि स्थल पर मालवीय समाज द्वारा गड्ढा खुदाई का कार्य होता है, इसके पश्चात प्रातः 9 बजे 5 मोटे रस्सों के सहारे सागौन की लकड़ी से निर्मित भारी भरकम 85 फुट ऊंचे स्मृति ध्वज उतारने का सिलसिला प्रारंभ होता है.. ढोल, नगाड़ों, शंखनाद ,घन्टाध्वनी और बाबा गरीबनाथ के जयकारों के साथ लगभग 1 घण्टे की मशक्कत के बाद ध्वज को उतारा जाता है.. बाबा के आदेशानुसार सभी समाज एवं सातों जातियो के लोग तन्मयता के साथ बाबा की सेवा में जुट जाते हैं.. फिर आवश्यक मरम्मत, रंगरोगन, स्नान, शुद्धिकरण, हवन, पूजन, आरती के पश्चात दोपहर 4 बजे पुनः चढ़ाने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है.. ध्वजारोहण के इस अद्भुत, आलोकिक किंतु बेहद जोखिमपूर्ण कार्यक्रम के साक्षी बनने हजारों दर्शनार्थि अवन्तिपुर बड़ोदिया आते हैं.. इसी बीच समाधि स्थल के पास ही नेवज नदी के सूखे प्रांगण में 15 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन प्रारंभ हो जाता है जिसमे आगन्तुक श्रद्धालु जीवनोपयोगी वस्तुओं के साथ खानपान एवं मनोरंजन के साधनों का लुफ्त उठाते है... सम्पूर्ण मेला अवधि में लगभग एक से सवा लाख श्रद्धालुओं का यहाँ आगमन होता है.. मेले के सम्पूर्ण व्यवस्था "तीर्थ एवं मेला विकास प्राधिकरण" तथा संस्कृति विभाग के सहयोग से स्थानीय ग्राम प्रशासन करता है.. साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से भारी पुलिस बल भी तैनात किया जाता है.. सम्पूर्ण आयोजन पर जिला प्रशासन, अनुविभागीय अधिकारी एवं तहसीलदार की पैनी नजर रहती है..
 *होती हैं सभी मनोकामनाएं पूर्ण...*-- 
 मान्यता है कि बाबा गरीबनाथजी के समाधि स्थल पर एवं उनकी आराध्य दैवी के दर्शन मात्र से भक्तों की सच्चे भाव से की हुई समस्त मन्नते पूर्ण होती है.. रंगपंचमी पर जिन महिलाओं की गोद सुनी होती है वो गाय के गोबर से यहाँ उल्टा स्वास्तिक बनाती है , साथ ही असाध्य रोगों के लिए की हुई मनोकामना भी पूर्ण होती है। मन्नते पूर्ण होने पर भक्त गण ढोल ढमाकों और मंगलगीत के साथ दरबार मे मनोती उतारने आते हैं और यथाशक्ति ध्वज पर चांदी का स्वास्तिक, छत्र ,ध्वजा चढ़ाने की परंपरा है..
 *स्थान के विकास की दरकार...*
     मन्दिर प्रबंध समिति सचिव महेंद्र सोनी ने बताया कि प्राचीन काल से कस्बा अवन्तिपुर बड़ोदिया की ऐतिहासिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि होने के कारण प्रदेश भर में जाना जाता है.. बाबा गरीबनाथजी का 725 वर्ष पुराना समाधि स्थल, धाकगड़ी माहेश्वरी समाज के कुलदेवता सिद्धेश्वर महादेव का 1100 वर्ष प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर, माँ लालबाई फूलबाई की शरद पूर्णिमा पर प्रसिद्ध शाही सवारी अवन्तिपुर बड़ोदिया को एक "धार्मिक नगरी" की श्रेणी में खड़ा करते हैं.. जिसके दर्शनार्थ यहाँ प्रदेश भर से हजारों दर्शनार्थियों का वर्षभर आगमन होता रहता है, किंतु जैसा धार्मिक महत्व यहाँ का है उस हिसाब से यहाँ आवश्यक विकास कार्य ना के बराबर है.. प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह जी के 4 बार आगमन और घोषणाए होने सहित अनेक नेता, मंत्री एवं आला अधिकारीयो का यहाँ आना जाना लगा रहता है.. और हर बार यहाँ की समस्याओं एवं मूलभूत आवश्यकताओ से भी अवगत करवाया जाता रहा है किंतु किसी का भी इस ओर ध्यानाकर्षण ना होना आश्चर्य की बात है.. विगत 15 वर्षों से यहाँ के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए "धार्मिक पर्यटन स्थल" घोषित करने की मांग स्थानीय विधायक सांसद के माध्यम से की जाती रही है किंतु इस सम्बंध में किसी की रुचि ना लेना आश्चर्य का विषय है.. स्थान के महत्व के अनुसार यहाँ ना तो सुव्यवस्थित पहुँच मार्ग है और ना मूलभूत सुविधाएं मौजूद है.. प्रबंध समिति दानपात्र की मामूली आय से यहाँ का रखरखाव बमुश्किल करती है.. इस वर्ष "म.प्र.तीर्थ एवं मेला विकास प्राधिकरण" ने थोड़ी रुचि लेते हुए राशि जारी करने का आश्वासन जरूर दिया है..

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