फिल्टर प्लांट जांच में तीन अधिकारी पाए गए दोषी सीएमओ, जलप्रदाय प्रभारी और फिल्टर प्लांट प्रभारी अब कटघरे में जांच में बड़ा खुलासा- जनता को बिना परीक्षण के पिलाया पानी एसडीओं ने कलेक्टर को भेजी अनुशंसा मांगी दोषियों पर कार्यवाई की अनुमति
- फिल्टर प्लांट जांच में तीन अधिकारी पाए गए दोषी
- सीएमओ, जलप्रदाय प्रभारी और फिल्टर प्लांट प्रभारी अब कटघरे में
- जांच में बड़ा खुलासा- जनता को बिना परीक्षण के पिलाया पानी
- एसडीओं ने कलेक्टर को भेजी अनुशंसा मांगी दोषियों पर कार्यवाई की अनुमति
- सीएमओ, जलप्रदाय प्रभारी और फिल्टर प्लांट प्रभारी अब कटघरे में
- जांच में बड़ा खुलासा- जनता को बिना परीक्षण के पिलाया पानी
- एसडीओं ने कलेक्टर को भेजी अनुशंसा मांगी दोषियों पर कार्यवाई की अनुमति
भारत सागर न्यूज/नागदा । शहर में गत दिनों मटमैला पानी वितरीत करने के बहुचर्चित मामले की जांच रिपार्ट में नपा के तीन अधिकारियों को लापरवाही सामने आई है। इनके खिलाफ प्रकरण कायम करने के लिए एसडीओं (राजस्व) ने अनुशंसा कर कलेक्टर से अनुमति मांगी है। जांच रिपोर्ट में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। बड़ी बात यह सामने कि जनता की बुनियादी सुविधा के तहत शहर में जो पेयजल उपलब्ध कराया गया उसमें 8 माह में मात्र दो बार पानी की जांच हुई।
फिल्टर प्लांट पर कबुतर का मल, गंदगी और अंडे मिलना प्रमाणित पाया गया। फिल्टर प्लांट की प्रयोगशाला जुलाई 2024 से 22 सितंबर 2025 तक मतलब लगभग 14 माह तक बंद रहना भी प्रमाणित गया। फिल्टर का एक महत्वपूर्ण सिंस्टम एक माह से बंद होने की बात भी उजागर हुई। तीनों अफसरों के खिलाफ कार्यवाही की अनुमति के लिए एसडीएम ने कलेक्टर उज्जैन को पतिवेदन प्रेषित किया है। गौरतलब हैकि इस कार्यवाई अवधि के दौरान यहां सीएमओ के पद पर पीके सुमन कार्यरत थे। जिनका हाल में मंदसौर स्थानांतरण हो गया । इसी प्रकार से जल शाखा प्रभारी हर्षित माथुर और फिल्टर प्लांट प्रभारी लिनस फ्रेकलिन शिंदे अब कार्यवाई के शिकंजे में र्हैं। यह पूरा मामला आरटीआई एक्टिविस्ट कैलाश सनोलिया की एक शिकायत की जांच में सामने आया है। जिसकी शिकायत जनसुनवाई में की गई थी।
इन बिंदुओं को प्रमाणित माना-
कलेक्टर को प्रेषित प्रतिवेदन में एसडीओं राजस्व रंजना पाटीदार ने नपा के जिम्मेदारों की कई घोर लापरवाही की तरफ घ्यान आकर्षित किया है। यहां तक लिखा हैकि वर्षाकाल में बिना परीक्षण जल प्रदाय किया जाना घोर लापरवाही है। प्रेषित प्रतिवेदन मे इस
प्रकार लापरवाही प्रमाणित पाई गई-
(1) फिल्टर प्लांट का सुचारू रूप से क्रियान्यवन और मेंटीनेस कार्य नहीं किया जा रहा है।
(2) सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सीएलएफ मशीन पिछले एक माह से बंद है।
(3) फिल्टर प्लांट की रैलिंग पर कबुतर के मल (गंदगी) अडें बच्चें आदि के आरोप प्रमाणित पाए गए। गौरतलब हैकि जांच में नपा के जिम्मेदारों ने इन साक्ष्यों का नष्ट कर दिया गया था।
(4) फिल्टर प्लांट की जल प्रयोगशाला भारतीय जल परीक्षण (इंडियन स्टेटर्डवाटर स्पेसिफिकेशन) के आधार पर परीक्षण लेब में परीक्षण नहीं किया जा रहा है।
(5) जुलाई 2024 से 22 सितंबर 2025 तक अर्थात लगभग 14 माह प्रयोगशाला बंद रही। शहर में बिना जांच के पेयजल वितरीत हुआ।
(6) गत 8 माह में मात्र 2 बार जल का परीक्षण मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संभागीय कार्यालय उज्जैन में परीक्षण कराया गया।
(7) प्रयोगशाला सहायक का पद मप्र शासन से भरा जाता है जोकि अभी भी रिक्त है।
(8) 22 सितंबर 2025 से प्रयोगशाला में एक दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी से कार्य कराया जा रहा है, जोकि पेट्रोकेमिकल में डिप्लोमाधारी बताया जा रहा है। ( स्त्रोत- कलेक्टर को प्रेषित एसडीओं प्रतिवेदन
आरटीआई के बाद जांच टीम का गठन-
शहर में दूषित जल वितरण फिल्टर लांट की रैलिंग पर कबुतर के घोसले और पानी में अंडे गिरने की संभावना आदि का यह पूरा मामला आरटीआई एक्टिविस्ट कैलाश सनोलिया ने उठाया था। सूचना अधिकार मे उन्होंने फिल्टर प्लांट का निरीक्षण कर मौके के फोटों और वीडियो फुटेज अधिकृत रूप संकलित किए थे।बाद में इन प्रमाणों को आधार बनाकर एसडीओं (राजस्व) की जनसुनवाई में एक शिकायत की गई। शिकायत पर एसडीओं ने दो सदस्यों की एक जांच टीम का गठन किया । जिसमें नागदा तहसीलदार मधु नायक और लोकस्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग के एसडीओं एमएल परमार को जिम्मेदार सौपी गई। जांच टीम ने मौके का निरीक्षण कर पंचानामा भी बनाया। नपा के अधिकारियों का पक्ष सुना। साथ ही शिकायत कर्ता सनोलिया से अपनी शिकायत के पक्ष में प्रमाण मागें गए थे। जो उन्होनें पेन डाइव मे सारे फुटेज जो आरटीआई से जुटाए थे उनको प्रस्तुत किया। दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही के लिए कलेक्टर को प्रेषित एसडीएम (राजस्व) के प्रतिवेदन की प्रति सनोलिया ने मंगलवार को मीडिया को जारी की है।
ये उठाए सवाल-
(1) प्रयोगशाला सहायक का पद मप्र शासन के द्धारा भरा जाता है लेकिन जिम्मेदार जनप्रतिनिधि इस संवदेनशील मामले में अपनी जिम्मेदारी निभानो में असफल हुए।
(2) शहर में दूषित पानी वितरण का मामला सितंबर के दूसरे सप्ताह में जबं उन्होंने उठाया उसके बाद 22 सितंबर को एक दैनिक वेततनभोगी कर्मचारी को प्रयोगशाला में बैठाया। इसके पहले 14 माह तक प्रयोगशाला बंद रहीं यह कार्य उस कर्मचारी से पहले क्यों नहीं कराया गया।
(3)जांच की पड़ताल के दौरान नपा के अधिकारियों ने जब 9 सितंबर को लिए गए पानी के नमूने की रिपार्ट पेश की जिसकी जांच उज्जैन में हुई। इस रिपार्ट में पानी में टर्बिडिटी 2.8 एनंटीयु सामने आई, जबकि टर्बिटीडी का मानक स्तर 1.0 एनंटीयू होना चाहिए। मतलब पानी में घुलनशील ओर अधुलनशील पदार्थ की मात्रा को हटाने में सिस्टम नाकामयाब रहा। जनता को यह पानी मजबूरन पीना पड़ा। पानी का पीएचयू का स्तर भी मानक से अधिक 8.08 सामने आया।
इनका कहना -
जनसुनवाई में कैलाश सनोंलिया की मिली शिकायत जांच में सही पायी गई। बिना परीक्षण के पानी शहर मे वितरीत हुआ। प्रयोगशाला कई महिनों से बंद रहीं। तीन अधिकारी सीएमओं, जलशाखा प्रभारी, फिल्टर प्लांट प्रभारी की लापरवाही सामने आई है। तीनों के खिलाफ कार्यवाही के लिए कलेक्टर को प्रेषित प्रतिवेदन में अनुशंसा कर कार्रवाई के लिए अनुमति मांगी गई है।
रंजना पाटीदार, एसडीओं (राजस्व) नागदा
फोटों - प्लांट पर कबुतर की गंदगी के ये आरोप जांच में सही पाया गया।
प्रमाण- कलेक्टर को प्रेषित प्रतिवेदन की प्रति।





Comments
Post a Comment