उच्च वस्तु-तुच्छ मोल का विरोधाभास ही प्रभु प्राप्ति में बाधक है- साध्वी सुधर्मगुणा श्री





श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ प्रभु के तेले के साथ प्रारंभ हुई चातुर्मास बेला
देवास। हमें उच्च वस्तुु चाहिये लेकिन उसका मोल तुच्छ देने की कोशिश ही हमें वस्तु प्राप्ति से वांछित कर देती है। ठीक इसी प्रकार तीर्थंकर परमात्मा जो कि तीनों लोक में सर्वोच्च शक्ति वस्तु है यदि उसकी प्राप्ति करना है तो उसका मोल भी तुच्छ नहीं सर्वोच्च देना होगा। तुच्छ मोल में हम प्रभु को चाहते हैं यही प्रभु प्राप्ति की मुख्य बाधा है। ये उच्च मोल है - उच्च भावपूर्ण श्रद्धा, उच्च तपश्चर्या, उच्च जीवन चारित्र । उल्लेखनीय है चातुर्मास की प्रारंभिक बेला में श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ प्रभु के त्रिदिवसीय उपवास एवं आराधना इसी उच्च तपश्चर्या को ध्यान में रखकर प्रारंभ की है। इस तपश्चर्या में बड़ी संख्या में समाज के महिला पुरूष भाग ले रहे हैं।
श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर तुकोगंज रोड पर चातुर्मास की बेला में तेले की तपस्या को प्रारंभ करते हुए प्रवचन के दौरान साध्वी सुधर्मगुणा श्री जी ने यह बात कही। आपने कहा कि श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ प्रभु तीर्थंकर बनने के कई वर्ष पहले ही अपनी प्रतिमा रूप में तीनों लोक में पूजे गए। प्रभु ने तीर्थंकर परमात्मा के कल्याणक की सबसे अधिक आराधना की इसीलिये पाश्र्वनाथ प्रभु जगत में अधिक प्रसिद्ध हुए। अनेक युगों की पुण्य उपार्जना के बाद ऐसे प्रभु हमें सहज और सरल रूप में मिल गए हैं। उन्हें पाकर हमें प्रतिदिन अहोभाव और खुशी व्यक्त करना चाहिये। पाश्र्वनाथ प्रभु की आराधना एवं उपासना कर हम उन्हें साक्षात स्वरूप में पा सकते हैं।  मुफ्त में मिली उच्च वस्तु की कद्र नहीं करने का हमारा स्वभाव ही हमें हमारे मानव जीवन के उद्देश्य से भटका देता है। इसमें परिवर्तन अति आवश्यक है। शास्त्रों ने परमात्मा प्राप्ति के चार उपाय बताए हैं। प्रथम आहार संज्ञा को तोडऩे के लिये तप करना, द्वितीय मैथुन संज्ञा को तोडऩे के लिये शील धर्म पालन करना, तृतीय परिग्रह संज्ञा को तोडऩे के लिये दान धर्म ग्रहण करना, चतुर्थ भय संज्ञा को तोडऩे के लिये भाव धर्म विकसित करना। इन चारों उच्च भावों और क्रियाओं को जीवन में धारण करके हम आत्मा से महात्मा और अंतत: परमात्मा बन सकते हैं।


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