एक और धमाका, कुछ और मौतें

पंजाब का बटाला शहर 16 सितंबर को श्री गुरु नानक देव जी का 531वां विवाह उत्सव मनाने की तैयारी जोर-शोर से कर रहा था। हर जगह साफ-सफाई, टूटी-फूटी सड़कों की मरम्मत, बिजली-पानी की सुचारू व्यवस्था की जा रही थी, ताकि इस उत्सव में किसी किस्म की कमी न रह जाए। लेकिन इस बड़े आयोजन से पहले इस शहर में शोक पसर गया है। बुधवार को पाकिस्तान सीमा से लगा बटाला शहर धमाके से दहल गयायह काम किसी बाहरी दुश्मन का नहीं था, बल्कि घर में बैठे दुश्मन का ही था। वो दुश्मन जिससे लड़ने, जड़ से खत्म करने का दावा हर राजनैतिक दल और हर सरकार करती है, लेकिन फिर भी वह अपनी जड़ें फैलाए जा रहा है। यह खतरनाक दुश्मन है भ्रष्टाचार । इस भ्रष्टाचार की वजह से ही देश के कोने-कोने में कई अनैतिक काम, कई अवैध कारोबार पनपते हैं और इन पर चर्चा तभी होती है, जब कोई बड़ी दुर्घटना हो जाए। बटाला में पटाखा फैक्ट्री में हुआ धमाका इसी भ्रष्टाचार की देन है। शहर में चल रहे इस पटाखा कारखाने में शाम 4 बजे के आसपास विस्फोट हुआ, जो इतना जबरदस्त था कि इसकी गूंज कम से कम पांच किमी के दायरे में सुनाई दी। फैक्ट्री में काम करते मजदूरों और मालिक के समेत 23 लोगों की मौत इस हादसे में हुई, जबकि 26 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। फैक्ट्री के पास एक शापिंग माल, कुछ घरों की इमारतों को भी नुकसान पहुंचापास ही में खड़ी एक कार उछलकर दूर जा गिरी और उसमें सवार दो युवक मारे गए। गनीमत यह थी कि फैक्ट्री के पास चल रहे स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी, जिस वजह से वहां बच्चे मौजूद नहीं थे। अन्यथा इस हादसे का रूप और भयावह हो सकता था। जैसा कि रिवाज है इस आपराधिक दुर्घटना पर भी राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री आदि ने शोक प्रकट किया है। हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। मृतकों और घायलों के लिए अलग-अलग मुआवजों का ऐलान भी हो गया है। लेकिन इसके बाद क्या कोई सबक लिया जाएगा? क्या ऐसी दुर्घटनाएं रोकने के लिए सख्त नियम बनाकर उनका पालन किया जाएगा? क्या शहर के बीच इस तरह की गतिविधियों पर कोई लगाम लगेगी? ऐसे सवालों का जवाब शायद ना ही हो। क्योंकि अब तक का अनुभव यही बताता है। भारत में इस तरह की घटना पहली बार नहीं हुई है। बीते 10 सालों में ही ऐसी कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। 2012 में तमिलनाडु के शिवकाशी की पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट से 34 लोगों की मौत हो गई थी, साल 2008 में राजस्थान के भरतपुर में पटाखा फैक्टरी में धमाके से 26 लोग मारे गए थे, इसी साल ओडिशा में भी पटाखा बनाने वाले एक कारखाने में धमाका हुआ था जिसमें कम से कम सात लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा शहर के बीच में अवैध तरीकों से चल रहे कारखानों में आग लगने या धमाका होने की भी कुछ भयावह घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिनमें गरीब मजदूरों की ही मौत होती है। गांव से रोजगार खत्म होने पर ये लोग काम की तलाश में शहर आते हैं और ऐसा कोई हादसा न केवल उनके शरीर की बल्कि एक परिवार के सपनों की भी धज्जियां उड़ा देता है। __ शरीर और आत्मा के इन चीथड़ों को समेट सके इतनी शक्ति किसी मुआवजे, किसी शोक संवेदना में नहीं है। जल्द ही दीपावली आने वाली है, ऐसे में पटाखा बनाने की कई अवैध फैक्ट्रियां फिर सक्रिय हो जाएंगी। आतिशबाजी के काम में कड़े नियमों की जरूरत होती है, क्योंकि जरा सी चूक जानलेवा साबित हो सकती है। लेकिन जल्द से जल्द मुनाफा कमाने के लिए नियमों को ताक पर रखा जाता है और इसमें भ्रष्ट तंत्र पूरी तरह मददगार साबित होता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के नाम पर राजनैतिक हिसाब-किताब पूरा करने से फुर्सत मिले तो इस तरह की अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने का काम शुरु हो। तब तक तो हर आम भारतीय अपनी सांसों को चलता देख ही शुक्र मनाए।


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