राम नाम का संकीर्तन वही करता है जिसे रामजी से प्रेम हो- अंतिमबाला बैरागी !

देवास।राम नाम का संकीर्तन वही करता हैं जिसे रामजी से प्रेम हो। वही आज हम धन-संपत्ति और संसार की अनेक वस्तुओं जो हमें सुख प्रदान करती हैं उसको पाने में लगे हैं। लेकिन राम नाम को पा लोगे तो बेड़ा पार हो जाएगा। हरि की कथा में भक्त, तो भक्त की कथा में हरी प्रसन्न होते हैं। कथा एक अमृत है जिसे देवता भी सुनने को आतुर रहते हैं। जब भक्ति ओर वैराग्य एक हो जाए तो समझो श्रीकृष्ण में विलीन हो गए है। यदि कथा प्रथम और अंतिम दिवस की भी सुनते हैं तो उन्हें पूरे 7 दिन की कथा का पुण्य मिलता। और वैकुंठधाम मिलता है। अगर कोई सेवा में ही लगा रहता है उसे भी बराबर का पुण्य मिलता है। आज से 4 दिन तक नानी बाई का मायरा भक्तगण सुनेंगे। कलयुग में कोई ज्ञान की बात सुनना पसंद नहीं करता है। बल्कि ज्ञान देना ज्यादा पसंद करते हैं। नानी बाई का मायरा कथा को प्रभु की अनन्य भक्त मीरा ने 700 वर्ष पूर्व मारवाड़ी में लिखा था। आज से 700 वर्ष पूर्व एक भक्त का जन्म हुआ नरसिंह मेहता। इनको जन्म से ही शारीरिक पीड़ा थी। जब नरसिंह मेहता 5 वर्ष के थे तब गांव में महामारी आई। नरसिंहजी के माता पिता का देहावसान हो गया। नरसिंह जी की दादीजी ने उनका पालन पोषण किया। नरसिंह जी की दादी जी को एक ही चिंता थी कि मेरा पोता नरसिंह बोलने लग जाए। यह विचार 17 मार्च से 20 मार्च तक  राधा कृष्ण मंदिर चाणक्यपुरी में आयोजित किए गए नानी बाई के मायरे में शुक्रवार को व्यासपीठ से अंतिम वाला बैरागी ने व्यक्त किए। नानी बाई मायरो का शुभारंभ मुख्य आयोजक चंदा शर्मा ने व्यासपीठ की पूजा अर्चना कर किया। अंतिम बाला बैरागी ने आगे कहा कि दादी जी एक बार शिवरात्रि महापर्व पर बाबा के दर्शन को गई। दर्शन करने के पश्चात जब देखा तो एक संत जिनके ललाट पर चंदन लगा हुआ था। देखकर उस संत के पास गई और बोली कि बाबा ओ बाबा, बाबा ओ बाबा लेकिन स्वर्ण आभूषणों से श्रंगारित  दादी जी को देखा तो संत आंखें बंद कर राम-राम जपने लग गए। अथक प्रयास के बाद भी बाबा नहीं बोले। उसके बाद भी हार नहीं मानी दादी ने और फिर बाबा को जगाने का प्रयास करने लगी। बार बार संबोधन करने पर आखिरकार संत ने पूछा कि क्या चाहती हो। तो बोली कि इस गूंगे बहरे बालक को ठीक कर दो।  संत ने उसके सिर पर हाथ रखा और हरे कृष्ण, हरे राम, हरे कृष्ण हरे राम का रटन बालक से करवाने लगे। बालक  नर्सिंग ने भी ऐसे ही रटन शुरू कर दी और उसकी वाणी लोट आई। फिर दादी ने  संत से कहा कि बाबा मांगो क्या भेंट चढाऊँ।संत   लेकिन संत ने कुछ भी लेने से मना कर दिया। कि बस भोले बाबा की कृपा बनी रहे यही मेरा धन और मेरी संपत्ति है। राम नाम से बड़ा कोई धन नही संसार मे।जिसको पाकर ओर कुछ पाने की इच्छा नही रह जाती है।मुख्य यजमान भगवान रंगनाथ थे। धर्मप्रेमियों ने बड़ी संख्या में शामिल होकर धर्म लाभ लिया।



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