रुक्मिणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती- पं. पाठक

- बजरंग नगर में चल रही भागवत कथा में हर्षोल्लास से मना श्रीकृष्ण-रुक्मणि विवाह




भारत सागर न्यूज/देवास। जब जीव में अभिमान आता है तब भगवान से वह दूर हो जाता है, लेकिन जब कोई भगवान के अनुराग के विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है, उसे दर्शन देते है। उक्त उद्गार सोनकर परिवार द्वारा बजरंग नगर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन व्यासपीठ से पं. मुकेश पाठक ने व्यक्त किए। आयोजक सुनीता सोनकर एवं सुविशी सोनकर ने बताया कि कथा में श्रीकृष्ण-रुक्मणि विवाह हर्षोल्लास से मनाया गया। भक्तों ने सुमधुर भजनों पर नृत्य किया। जैसे ही विवाह हुआ भक्तों ने फूलो की वर्षा कर मंगलगीत गाए। महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण रूक्मिणी के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ, लेकिन रुक्मणि को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया। रुक्मिणी स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नही सकती। इस अवसर पर श्रीकृष्ण और रूक्मणि के विवाह की झांकी ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। 



रुक्मिणी जी ने स्वयं को प्राप्त करने के लिए उपाय भी बताया। पत्र में रुक्मिणी ने बताया कि वह प्रतिदिन पार्वती की पूजा करने के लिए मंदिर जाती हैं, श्रीकृष्ण आकर उन्हें यहां से ले जाओ। पत्र के माध्यम से रुक्मिणी ने कहा कि मुझे विश्वास है कि आप इस दासी को स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं हजारों जन्म लेती रहूंगी। व्यासपीठ की आरती पश्चात श्रीजी बेटी बचाओ बेटी पढाओ सेवा समिति सचिव घनश्याम मोदी, अध्यक्ष दिव्या परमार, ओमप्रकाश विजयवर्गीय आदि ने करते हुए गुरु महाराज का आशीर्वाद लिया। आज भी कथा प्रसंग पश्चात भक्तो पौधे वितरित किए गए।

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