जिस घर में बड़े-बुजुर्गों का सम्मान होता है वह स्वर्ग के समान होता है- पं. अजय शास्त्री

तेरी बांसुरी पे जाऊं बलिहार रसिया, मैं तो नाचूंगी तेरे दरबार रसिया की भावपूर्ण प्रस्तुति पर श्रद्धालु झूम उठे





भारत सागर न्यूज/देवास। फल की वासना से, फल पर ही दृष्टि रखकर कर्म करने वाला मनुष्य उत्तम कर्म करने पर भी कर्मयोगी नहीं हो  सकता। ऐसे मनुष्य को शौहरत और दौलत प्राप्त हो सकती है लेकिन उसे परमात्मा और जीवन में शांति नहीं मिल सकती है। 



कर्मयोगी अपनी अंतरात्मा की आवाज को परमात्मा का आदेश मानकर आचरण करते हैं। परन्तु मोह के अधीन व्यक्ति निष्काम कर्म योग नहीं अपना सकते। बुद्धि पर पड़ा मोह-माया, अज्ञानता रूपी अंधकार का पर्दा ज्ञान के प्रकाश से ही हटाया जा सकता है। इसी आज्ञानता के कारण मानव मोह के दलदल में फंस जाता है। इसलिए मोह माया का त्याग करना चाहिए।



यह विचार व्यासपीठ से भागवताचार्य पं. अजय शास्त्री सिया वाले ने राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित आवलिया पिपलिया खाटू धाम में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा, कि आज के युग में बुजुर्गों से वृद्ध आश्रम भरे पड़े हैं। एक बेटा श्रवण कुमार था जिसने अपने माता-पिता को कावड़ में लेकर तीर्थ यात्रा करवाई थी। 



लेकिन आज के युग में बेटे अपने माता-पिता को ही दुत्कार रहे हैं ठोकर मार रहे हैं। जो माता-पिता की सेवा नहीं करता वह अपने जीवन में कभी शांति प्राप्त नहीं कर सकता। 



जिस घर में माता-पिता बड़े बुजुर्गों का सम्मान होता है वह घर स्वर्ग के समान हो जाता है। कथा पंडाल में कृष्ण रुक्मणी विवाह बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया।




इस दौरान पंडित शास्त्री ने तेरी बांसुरी पे जाऊं बलिहार रसिया, मैं तो नाचूंगी तेरे दरबार रसिया भक्ति गीत की भावपूर्ण प्रस्तुति पर श्रद्धालु झूम उठे। धर्मप्रेमियों द्वारा व्यासपीठ की पूजा अर्चना कर महाआरती की। श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।

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