दवा और भोजन के अभाव में मस्ते बच्चों के देश में ऐश्वर्य का फूहड़ प्रदर्शन ।

हमारा देश वास्तव में महान कहलाने का सही हक़दार है , क्योंकि इसी देश में हाल ही पिछले दिनों और अभी भी बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के जिलों में फैली चमकी बुखार से मात्र 15 दिनों में गरीब लोगों के 170 नन्हें बच्चों की कपोषण ,दरिद्रता और दवा के अभाव में दर्दनाक मौत हो गई है । समाचार पत्रों की एक रिपोर्ट के अनुसार इन अभागे बच्चों के 287 गरीब परिवारों के लगभग दो-तिहाई माँ-बाप मिट्टी के घरों में अपना गजारा करते हैं वे लोग केवल औसतन प्रतिदिन 148 रूपये रोज मजदरी में मिले रूपयों से अपने परिवार का पेट पालते हैं, उन्हें साफ पानी तक पीने को मयस्सर नहीं 6 ज्ञातव्य है मुजफ्फरपुर में मरे 170 बच्चे सिर्फ गरीबों के दाने-दाने को मुहताज कपोषित बच्चे मरे हैं, यह बात पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने अपनी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखी है 8 इसके विपरीत इसी देश में आज के लगभग सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार 20 और 22 जून को दक्षिण अफ्रीका के उद्योगपति ने उत्तराखंड के चमोली जिले के औली नामक स्थान पर अपने बेटों की शादी में दो सौ करोड़ रूपये खर्च करके भारत के भूख से बिलबिलाते और दवा के अभाव में मरते बच्चों के मुँह पर, और इस व्यवस्था पर करारा तमाचा जड़ा है! समाचार पत्रों के अनुसार इस शादी में सजावट हेतु स्विट्जरलैंड से फूल मंगाए गये ,जिसकी कीमत 5 करोड़ रूपये के लगभग होगी , इस शादी में जो निमंत्रण कार्ड छपे थे वे दो किलो भारी चांदी से निर्मित थे, जिनकी प्रत्येक की कीमत आठ लाख रूपये थी ,जिन्हें बालीबुड के कई अभिनेता, अभिनेत्रियों के साथ बड़े -बड़े बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं और स्वयंभू बड़े-बड़े कथावाचकों और कई मठाधीशों को भी निमंत्रित करने के लिए भेजा गया, सबसे विस्मित और स्तब्ध करने वाला समाचार यह है कि इस अति ऐश्वर्यपर्ण शादी में स्वदेशी का माला जपने वाले कथित योग गुरु 6 अब खरबपति बने बाबा रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण 8 भी सम्मिलित हुए थे । एक बात समझ में नहीं आती कि एक तरफ इसी देश में गरीबों के बच्चे दवा के अभाव और अदद भोजन न मिलने के कारण मर रहे हैं और दूसरी तरफ यहाँ के नेताओं, बाबाओं, गुरुओं और मठाधीश्वरों को इतनी ऐश्वर्यशाली शादी में शरीक होने में जरा भी झिझक और शर्म महसूस नहीं हो रही है ! आखिर ये लोग इतने सिद्धांत विहीन ,असहिष्णु और खुदगर्ज क्यों हो गये हैं? हमारे देश में प्राचीनकाल से पुराने ऋषि , महात्माओं 6 उदाहरणार्थ संत कबीर, गुरू नानकदेव आदि-आदि 8 का यह एक मानवीय परंपरा और करूणा की धारा के अन्तर्गत उनका यह दर्शन रहा है कि वे लोग आम जनता के सुख-दुख में हमेशा साथ रहकर, उनकी यथासंभव मदद करते थे , वे लोग समाज के लिए एक आदर्श स्थापित करते थे । परन्तु आज के इन कथित बाबाओं और गुरूओं का जीवन इतना ऐश्वर्यशाली और ठाठबाट वाला हो गया है कि इन्हें किसी भी दृष्टिकोण से बाबा या सन्त कहना किसी भी मानवोचित और न्यायोचित दष्टिकोण से न्यायसंगत नहीं लगता। एक यक्ष प्रश्न यह भी बार-बार मन में उठता है कि आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की भृकुटी केवल साधारण लोगों पर ही टेढ़ी होती है, जब बड़े नेताओं और धनपतियों के अरबों-खरबों रूपये का खुला प्रदर्शन होता है, तब इतने गरीब देश में ऐश्वर्य के इतने खुलेआम प्रदर्शन होते देखकर भी इन विभागों की आँखें क्यों नहीं देख पातीं!


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