आओ सतयुग तुम्हारा हार्दिक अभिनन्दन है

कलयुग में सतयुग सौ वर्ष केे लिए द्रुत गति से शान से उमड़ घुमड़ कर अजर अमर वाणी अटल वाणी परम संत बाबा जयगुरूदेव दयाल के हुकम पर स्वर्ग युग नवीन युग बड़ी शान शौकत से दौड़ता हुआ आ रहा है। असंदिग्ध सुख भविष्य विद्ववान आत्मदर्शी संत सतपुरूष, सूक्ष्म दृष्टि से ही नही अपितु स्थूल नेत्रों से भी देख सकते हैं। कलयुग में मानव का नैतिक एवं आध्यात्मिक पतन मिथ्या भाषण, झूठ, कपट, अन्याय, रोग शोक, मानसिक वेदना, अशुद्ध मनोव्यापार, झूठा मायाचार, स्वार्थी अधंकार, विषय वासना, इंद्रिय लिप्सा, तृष्णा से अपृप्त रेगिस्तान मिला है।
मनुष्यों ! चंद वर्ष में शुभ समय आने वाला है। वर्तमान की बुराईयों का शोधन होकर अन्याय, भ्रष्टाचार, अनैतिकता का अंत होकर नयी सुखद, सरल व्यवस्था स्थापित होगी। सतयुग आ रहा है। अपने समस्त आकर्षण, शानोशौकत, सुख समृद्धि में तीस बत्तीस रूपये तौला सोना, चूडिय़ों में हीरे और दूध घी की सुधा धार लेकर आ रहा है। भविष्य में पाप घटेंगे औैर उनका स्थान पुण्य लेगा, यह बिलकुल निश्चित है। हमें सतयुग के स्वागत के लिये हमेशा तैयार रहना चाहिये।
नया युग आता है तो परिवर्तन कब होता है? जब जब पाप, मिथ्याचार, स्वार्थ में लिप्त वासना पूर्ति विलासी, असूरी वासनापूर्ति, विलासी असुरी प्रवृत्ति,प्रलोभन बढकर धर्म की हानि कर मूल मानवीय गुण, संस्कार, आदर्श भूलने लगता है। नास्तिक बन सत्य, न्याय, प्रेम, सहानुभूति, धर्म-कर्म, मानव मूल्यों की अव्हेेलना करता है। तब मानव देह में ईश्वर का अवतार नास्तिकता को दूर कर पुन: आस्तिकता का राज्य फैलाकर आत्मा का जाजव्यमान सर्वत्र तेज प्रकार के रूप मे फैल जाता है।
धर्म कोई कपड़े का टुकड़ा नहीं जिसे धारण कर ध्वजा बनाकर फहरा दिया जाए। चापलूसी की चादर से चकाचौंध कर टोपी, टंगली और बकरी ईद मना ली, भभूत धारण कर सिंहस्थ मना लिया, नंगे हो गए और नारायण पा लिया। यज्ञ, हवन कर देवता प्रसन्न हो गए, पत्थर को परिलक्षित कर परमात्मा को पा लिया। धर्म तो ध्यान की ढाल, भजन का भाला, ज्ञान की तलवार एवं सुमिरन की सेना, पंथ की तोप, नाम का नगाड़ा, कर्म काल को पछाडा और निर्मल मन से आंतरिक आनंद की अनुभूति कर अंतस यात्रा का पथ प्रदर्शन ही मानवीय मौलिक मूल्यों का मानव धर्म है।
जनता के रहनुमा रक्षित सर्वत्र प्रेरक शासक भूपति राज्योचित पद क्षत्र धारण कर संतुष्ट रहे। अपने सेवकों को उचित धन देकर सही सेवा ले । न्याय व सुरक्षा जनता को दे, अकेले संपत्ति न हड़प ले। असहाय, गरीब, धर्मावलंबी, देवतुल्य स्वरूप, वृद्ध, बालक, रोगी, असहाय पर दया करे। 


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