परमात्मा जीव मात्र के नि:स्वार्थ मित्र है- पं. आशुतोष शुक्ल


देवास। जगत में परमात्मा को छोड़कर ऐसा अन्य कोई नहीं है जो अपना सर्वस्व किसी को दे दे, यदि सेवा और स्तुति करनी ही है तो भगवान की करो, जीव जब ईश्वर से प्रेम करता है तब ईश्वर जीव को ईश्वर बना देता है। परमात्मा जीव मात्र के निस्वार्थ मित्र है। संतोष सबसे बड़ा धन होता है, मित्रता हो तो सुदामा कृष्ण के समान। भक्त और भगवान के बीच धन आ जाता है तो संसार भगवान को भूल जाता है। उक्त विचार श्री बालाजी हनुमान मंदिर मुखर्जी नगर में चल रही श्रीमद भागवत में आचार्य आशुतोष शुक्ल (शास्त्री) ने व्यक्त करते हुए कहा कि दरिद्र होना अपराध नहीं, दरिद्रता में भगवान को भूल जाना अपराध है। सुदामा दीन ब्राह्मण थे मगर बचपन के मित्र जो त्रिलोकीनाथ है उनका सदैव स्मरण करते थे, इसलिए भगवान से मिलने गए तो प्रेम के दो मु_ी चावल में उन्होने सुदामा को सर्वस्व दे दिया।
कथा में श्रीकृष्ण की सोलह हजार एक सौ आठ रानियों के विवाह की कथा का वर्णन किया, राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्ति की कथा के वृत्तांत के साथ कथा की पूर्णाहूति की गई। इस अवसर पर शाजापुर से पधारे आचार्य अनिलमणि जी ने भागवत जी का पूजन कर पं. शुक्ल का स्वागत किया।


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