आत्मा में रमण करना ही उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है - पं. प्रबल जी शास्त्री

देवास। दिगंबर जैन समाज के पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के दसवें दिन पंडित जी ने दस लक्षण धर्म में बताया कि दिगंबर जैन समाज के पर्वाधिराज पर्युषण पर्व का आज दसवां और अंतिम दिन है और दस लक्षण धर्म में से आज उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का दिन है। ब्रह्म अर्थात आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य है। रागोत्पादक साधनों के होने पर भी, उन सबसे विरक्त होकर, आत्मोंमुखी बने रहना उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है।
इस प्रकार धर्म के ये दस लक्षण कोई बाहरी तत्व नहीं हैं, वरन विकारों के अभाव में प्रकट होने वाली आत्म शक्तियां हैं. क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच - ये आत्मा के अपने भाव हैं, जो क्रमश क्रोधादिक विकारों में प्रकट होते हैं. सत्य, संयम, तप और त्याग इनकी प्राप्ति के उपाय हैं. आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य धर्मों का सार है. अपनी आत्मा पर आस्था, अपने अविनश्वर वैभव का ज्ञान और अपने आत्म - ब्रह्म में रमण, धर्म का सार तो इतना ही है. चारों गतियों के दुखों से छुड़ाने की सामर्थ्य इसी में है.
पंडित जी ने कहा कि आज पर्युषण पर्व का अंतिम दसवां दिन है। आज हम ब्रह्मचर्य के स्वरूप पर विचार करेंगे। ब्रह्मचर्य के अनेक अर्थ हैं: प्रणव(जो मनुष्य को सदैव तरोताजा रखता है), ओंकार(जो पंच परमेष्ठी की उपासना का मूल आधार है) तथा शुचिता(जो पवित्रता की खान है)। ब्रह्म अर्थात निज शुद्धात्मा में रमण करना ही ब्रह्मचर्य है। पंचेन्द्रिय विषयों को त्याग कर आत्मालीन होना ही ब्रह्मचर्य है। आत्मा अतिदिव्य पदार्थ है, वह इंद्रियों के माध्यम से नहीं जाना जा सकता। आत्मा को जानने के लिए अंतर में लीन होना पङता है। आज ब्रह्मचर्य शब्द का जो अर्थ प्रचलित है वह स्थूल अर्थ है। आज मात्र स्पर्शन इंद्रिय के विषय सेवन के त्याग रूप व्यवहार ब्रह्मचर्य को ही उत्तम ब्रह्मचर्य मान लिया जाता है। हम ग्रहस्थ जीवन में उत्तम ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते, किंतु व्यवहार में खाम-विकार को जीतने का प्रयास करना चाहिये, सद् ग्रहस्थ बनना चाहिये, स्वपति व स्वपत्नी में संतोष धारण करना चाहिये और उत्तम ब्रह्मचर्य को लक्ष्य रखकर उसकी अभिव्यक्ति हेतु प्रयास करना चाहिये। आज देश में, समाज में नैतिकता का ह्रास होता जा रहा है। हम व्यवहार ब्रह्मचर्य को भी भूलते जा रहे हैं। आज का इंसान वासना की दृष्टी से पशु से भी हीन होता जा रहा है, जिसे उचित-अनुचित का, मर्यादा का ध्यान ही नहीं है। एक धर्मपरायण देश में, समाज में ऐसा  अनाचार देखकर ग्लानि होने लगती है। इसलिए विषयों की आशा दूर कर ब्रह्मचर्य को अवश्य धारण करना चाहिये। उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पालने वाले को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति अवश्य ही होती है। पर्युषण पर्व के महान अवसर पर मनुष्य दस धर्मों को अपनाकर, उनका पालन करके अपने जीवन का उद्धार करता है तथा अपने आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करके अजर अमर पद निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है।
उक्त जानकारी देते हुए कार्यक्रम प्रवक्ता निलेश छाबड़ा ने बताया कि गुरुवार प्रात सर्वप्रथम भगवान  वासुपूज्य जी के निर्वाण महामहोत्सव मनाया गया एवं  निर्वाण लाडू चढ़ाया गया  जिसका  सौभाग्य प्रीति शैलेंद्र जैन कॉलोनी बाग परिवार एवं महेंद्र बाबूलाल जैन इटावा परिवार  को प्राप्त हुआ, शांतिधारा का सौभाग्य हुकमचंद छाबड़ा परिवार एवं स्वर्णलता के सी जैन टाटा परिवार एवं सुभाषचंद जैन सोनकच्छ परिवार को प्राप्त हुआ एवं आरती का सौभाग्य स्वर्णलता के सी जैन परिवार  को प्राप्त हुआ।
रविवार को मनाई जावेगी सामूहिक क्षमावाणी एवं निकाली जाएगी भव्य शोभायात्रा
रविवार 15 सितंबर को दोपहर 3:00 बजे  स्थानीय पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर कवि कालिदास मार्ग से श्री जी की भव्य शोभायात्रा निकाली जावेगी जो शहर के विभिन्न मार्गो से होती हुई दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति सदन नयापुरा पहुंचेगी जहां पर श्री जी के 108 कलशो से कलसाअभिषेक किए जाएंगे। एवं सकल दिगम्बर जैन समाज की क्षमा याचना एवं स्नेह भोज दिगम्बर जैन उत्सव समिति के तत्वाधान में मनाया जाएगा। जहां पर सभी तपस्वियों का सम्मान, प्रतिभा सम्मान एवं सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के पुरस्कार वितरित किए जाएंगे। उक्त सभी कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट कवि कालिदास मार्ग, आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट  अलकापुरी, एवं शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ट्रस्ट आवास नगर ने सभी समाजजनों एवं समाज की सभी संस्थाओं दिगम्बर जैन उत्सव समिति, दिगम्बर जैन सोश्यल गु्रप सतपथ, दिगम्बर जैन सोशल गु्रप पुष्प, जैन मिलन, दिगम्बर जैन महिला मंडल, नवयुवक मंडल उद्भव एवं जैन यूथ फोरम का आभार व्यक्त किया। 


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