बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की पुस्तक पढ़ने के बाद हुआ हृदय परिवर्तन, बने बड़े समाजसुधारक

इनका जन्म रविदास समाज में हुआ था परंतु भेदभाव और छुआछूत के दंशों से आहत होकर इनके परिवार ने सिक्ख धर्म अपना लिया था। इसीलिए इन्हें रविदासिया सिख भी कहा जाता है।

महान दार्शनिक, दूरदृष्टा, साहेब - मान्यवर कांशीराम साहेब, कांशीराम जयंती पर विशेष ! 





इनसे मिलिये ये हैं मान्यवर कांशीराम साहेब इनका जन्म आज ही के दिन 15 मार्च 1934 को रूपनगर पंजाब में हुआ था। इनका जन्म रविदास समाज में हुआ था परंतु भेदभाव और छुआछूत के दंशों से आहत होकर इनके परिवार ने सिक्ख धर्म अपना लिया था। इसीलिए इन्हें रविदासिया सिख भी कहा जाता है। पढ़ाई में होशियार होने के कारण ग्रैजुएशन के बाद इन्होंने डिफेन्स रिसर्च एंड डेवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डी आर डी ओ) पुणे में विस्फोटक विभाग में सहायक वैज्ञानिक के तौर पर नियुक्त हुए लेकिन वँहा अपने आपको श्रेष्ठ कहने वाले लोगों के शोषण और अस्पृश्यता की भावनाओं से त्रस्त होकर इन्होंने वँहा नॉकरी छोड़ दी। कहा तो ये भी जाता है कि साहब ने 1964 में डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की लिखित पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ कास्ट पढ़ने के बाद इनका हृदय परिवर्तन हुआ और ये लग गए अपने समुदाय को जगाने में। कई गांव टीलो, मजरों और बस्तीयों में जा जाकर लोगों को संविधान के प्रति और अपने हक अधिकारों के प्रति जागरूक करने लगें। युवाओं की टोलियां बनने लगी पैदल, साईकल, नाव,बैलगाड़ी न दिन देखा न रात हमेशा समाजहित में सामाजिक अन्याय, शोषण अपराधों के खिलाफ खड़े होने लगे जुलूस निकालने लगें ज्ञापन देने लगे। अधिकारियों और राजनैतिक दलों के लिए परेशानी होने लगी। 1978 में अनुसूचित जाति,जनजाति,पिछड़ा वर्ग,और अल्पसंख्यक समुदायों को मिलाकर बामसेफ की स्थापना की । बामसेफ की कैडर बेस प्रशिक्षण और समर्पित संगठित कार्यकर्ताओ की फौज खड़ी की ।इसी फ़ौज और सामाजिक परिवर्तन की क्रांति ने ही 1984 में बहुजन समाज पार्टी की नींव डालने में बहुत मदद की। नींव तो आर पी आई की भी रखी थी परंतु उसकी कांग्रेस से नजदीकी देखते हुए साहब कांशीराम जी ने बी एस पी की नींव रखी और यही भविष्य में आज दलितों को शोषितों से बाहर लाने में नींव का पत्थर साबित हुई। 1984 से 1995 तक बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहें साथ ही बामसेफ जैसा विश्वव्यापी संगठन खड़ा किया जिसने समुदाय को बहन मायावती, वामन मेश्राम जैसे कोहिनूर दिये। 1981 में ही डी एस 4 की स्थापना की। 1996 में आप होशियार पुर से सांसद बने तथा 1991 से 1996 तक इटावा संसदीय क्षेत्र का नेतृत्व किया। 1982 में आपने चमचा युग पुस्तक लिखी। 1988 में अनुज कुमार ने बहुजन नायक कांशीराम के अविस्मरणीय भाषण लिखी। आप जब तक जीवित रहें सभी रिश्ते नाते त्यागकर सिर्फ समाज के लिए कार्य किया और बहन जी को तीन बार उत्तरप्रदेश जैसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री बनाया। आपकी सोच, सामर्थ्य, प्रबन्धन, व्यक्तित्व इतना विशाल था कि विरोधी भी तारीफ करते थे। मान्यवर साहब कहते थे कि पहला चुनाव हारों, दूसरा हराओ और तीसरा जीतों। पहला चुनाव खुद जांजगीर चांपा से लड़े हारे, दूसरा चुनाव वी पी सिंह जैसे भावी प्रधानमंत्री के सामने लड़े और 70000 से ज्यादा वोट हासिल किए और तीसरा चुनाव जीते। आजकल के दलित नेताओं को इनसे सीखना चाहिए कि नेतागिरी जमकर करें लेकिन अपने समुदाय या वर्ग का गला घोंटकर नही और न ही अपने मुद्दों पर खामोशी ओढ़कर।आप यदि जिंदा है तो अपने वर्ग के लिए लड़िये, बोलिये और गलत का विरोध कीजिए।

9 ऑक्टोबर 2006 को मान्यवर साहब का निधन हो गया और हमने हमारा नायक, संरक्षक, विश्वव्यापी सोच और तार्किकता का महायोद्धा खो दिया ।आज आपकी जन्मजयंती पर कोटि कोटि नमन ।

  लेखक - राजेश चक्रवर्ती






Comments

Popular posts from this blog

मध्यप्रदेश की विधानसभा के विधानसभावार परिणाम .... सीधे आपके मोबाइल पर | election results MP #MPelection2023

हाईवे पर होता रहा मौत का ख़तरनाक तांडव, दरिंदों ने कार से बांधकर युवक को घसीटा

मध्य प्रदेश ग्रामीण बैंक मे प्रबंधक एवं अधिकारीयो ने दिया ईमानदारी का परिचय