व्यवस्था शर्म करो ! रोते बिलखते परिजन ! इंजेक्शन की कालाबाजारी ! देखकर भी अंधे बनने का ढोंग क्यों ?



देवास, राहुल परमार। रोते बिलखते परिजन ! इंजेक्शन की कालाबाजारी ! और ऑक्सीजन की कमी ! लेकिन इन सबके साथ एक ईलाज होना और जरुरी है और वो है जिम्मेदारों की ऑखों और कानों का ! यहां इनका ईलाज इसलिए भी जरुरी है क्योंकि सब कुछ इन जिम्मेदारों की ऑखों के सामने हो रहा है यही नही इनके कानों तक भी यह आवाज पंहुचने के बावजूद उनके मुख से कुछ भी नही निकल रहा । हॉ ! एक अवस्था जरुर सामने आई है, वह है मौन व्रत की ! क्या इन्ही व्यवस्थाओं और इस अवस्था में निष्क्रियता के लिए इन्हें जिले में जिम्मेदार पदों पर नियुक्ति दी गई हैं। जबकि इनसे बेहतर तो देवास के समाजसेवकों ने कर दिखाया है। देवास में उच्च पदों पर आसीन अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में बिना जनप्रतिनिधियों के कोई भी निर्णय लेने में सक्षम नही है और यदि ऐसा है तो फिर इनकी आवश्यकता ही क्या है ? केवल जनप्रतिनिधि ही काम कर लें फिर तो और इनकी पगार से जनता की सेवा ही हो जाए फिर तो....

    पिछले दिन चिकित्सालय का एक विडियो सामने आया जिसमें परिजन हॉस्पीटल की पलंग पकड़े परिजन बिलख रहे हैं। जानकारी अनुसार उस दौरान हुई मौतों का कारण बिमारी तो था ही लेकिन उन मरीजों की ईलाज में लापरवाही भी मुख्य वजह थी। प्राप्त जानकारी के अनुयसार उस कक्ष में कोई भी जिम्मेदार डॉक्टर उपस्थित नही था और न ही कोई उन परिजनों की सुन रहा था। ऐसे में कलेक्टर, एसडीएम और अन्य कई उच्चाधिकारियों के निरीक्षणों ने आखिर किस स्तर पर अस्पताल की सुविधाओं में सुधार किया। उल्टा इनउ च्च अधिकारियों के मुंह पर जिम्मेदारी के नाम की कालिख अलग पुतवा दी। क्या यही स्तर इस अस्पताल के कर्मचारियों और जिम्मेदारों का हमेशा रहेगा ? और यदि यह स्थिति ऐसी ही बनी रही तो मौतों का यह दुखद सिलसिला जारी रहने से कोई नही रोक सकेगा! 

    इधर मरीजों के ईलाज के लिए डॉक्टर व्यवस्था करने में नाकाम सिध्द हो गये हैं। मरीजों के जिस ईलाज की फीस डॉक्टर ले रहे हैं और जिन दवाओं को डॉक्टरों द्वारा लिखे जाने पर आसानी से मिलने की ग्यारंटी नजदीकी मेडिकल वाले लेते थे, वह भी अब स्वप्न में भी सही नही हो पा रहा है। क्योंकि ईलाज के लिए जरुरी कुछ दवाएं और इंजेक्शन खुद परिजन ही जुगाड़ रहे हैं। आपदा की परिस्थिति में कम दाम की दवाएं और इंजेक्शन हजार गुना दाम में खरीद कर लाना परिजनों की मजबूरी हो गई हैं। उपर से इन समाजसेवकों के बारे में कुछ मत कहो ! कुछ कह दो तो काम बंद करने की धमकी और तरह-तरह के ड्रामे अलग !  ऐसे में हमारे अन्नदाताओं से कुछ सबक ले लेते जिम्मेदारों जिन्होनें खुद आफत में होते हुए, अपनी बची कुची फसल भी सेवा में पिछले वर्ष दान कर दी थी। देश के लिए की गई आपकी यह पढ़ाई इस तरह से काम आयेगी तो हम आगामी पीढ़ी को इस क्षेत्र में धकेलने से पहले नैतिक शिक्षा का पाढ जरुर पढ़ायेंगे। पाठकों को बता दें इस स्थिति में भी स्थिति नियंत्रण करने के नाम पर कई गुना अधिक शुल्क वसूलकर देशसेवा जो कर रहे हैं, वो देशभक्ति की प्रथम पंक्ति में खड़े होंगे। क्या इन लोगों में कोई शर्म बची हुई है, क्योंकि देह तो इनके सामने निर्जीव आती रहती है और आत्मा इनकी पहले ही मर गई है। खैर बात इंजेक्शन की हो रही थी तो बता दें इन दवाओं की कालाबाजारी जमकर हो रही है। प्रशासन की आंखों के सामने यह सब घटित हो रहा है लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें उनकी कई ज्ञानेन्द्रियों का ईलाज करने के लिए ही अभी डॉक्टर उपलब्ध नही हो पाये हैं, ऐसे में आमजन की पीड़ा न तो प्रशासन को दिखाई देगी और न ही सुनाई ! 



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