कबीर जयंती पर विशेष. जिन्हें बचपन में रटते गए फिर ,धीरे-धीरे भूलते गए



            कबीर से हमारा पहला परिचय स्कूल के समय  पाठ्य पुस्तकों में उनकी रचनाओं को पढ़ने के दौरान होता है.संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या करने और जीवनी लिखने के दौरान कबीरदास के बारे में उतना ही लिखा जाता था जितना बाल बुद्धि से समझ में आता था! 15 वीं सदी के रहस्यवादी, भक्ति कालीन,निर्गुण संत परंपरा के कवि कबीर को कभी संत कह कर संबोधित किया जाता तो है ,तो कभी महात्मा।
                  पाखंड, कर्मकांड, धार्मिक अंधविश्वास का जमकर खंडन करने वाले कबीर प्रगतिशील कवि हैं ।  जिनकी रचनाओं में ईश्वर भक्ति, प्रेम, ज्ञान ,सत्संग तथा अधिक मानव हितेषी पक्ष उजागर होता है ।
                 विडंबना यह है कि संत कबीर और उनके विचार पाठ्य पुस्तकों तक ही सीमित रहते हैं। परीक्षा खत्म उनकी सीख भी खत्म । बाद के जीवन में उन्हें गुरु प्रतिमा या  संप्रदाय प्रमुख के रूप में याद रखा जाता है उनकी शिक्षाओं को आचरण में उतारने के प्रयास बहुत कम होते हैं।
                 हम अब तक जान ही नहीं पाए कि कबीर को पढ़ने से ज्यादा समझने की आवश्यकता है. उन्हें परम पुरुष बनाकर ऊंचे आसन पर बैठा दिया जाता है .ऐसे आसन पर जहां विराजित व्यक्ति की पूजा की जाती है, उसके विचारों का पालन करने की श्रद्धा नहीं होती है.अंधी भक्ति का यह आवरण हटा कर देखेंगे तो कबीर के विचार पथ पर चल पाएंगे।
               कबीर ने अपनी वाणी में उस समय  समाज में फैलें धार्मिक पाखंड,  कुरीतियां, अंधविश्वास ,जातिवाद पर करारी चोट की है। वे  धर्म और ईश्वर भक्ति को उसके वास्तविक अर्थ के साथ प्रस्तुत करने वाले सिद्ध संत थे.
           उनके दोहो मैं वहां राह दिखती है जो जीवन प्रबंधन के लिए आवश्यक है। अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान किताबों में पड़े इन दोहो को जरा याद कीजिए :
        -काल करे सो आज कर, आज करे सो अब.पल में प्रलय होएगी बहुरि करेगा कब..
         पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ,पंडित भया न कोई. ढाई आखर प्रेम का.पढ़े सो पंडित होय..
         गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय. बलिहारी गुरु आपने,गोविंद दियो मिलाय |
         ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये.औरन को शीतल करे,आपहु शीतल होय...
          बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर.पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर...
          निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाये. बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुहाय..
          बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलया कोय. जो मन देखा आपना मुझसे बुरा न कोय...
         दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय. जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय...
             क्या यह दोहे पढ़ाई की दुनिया के बाहर हमारे लिए सबसे बड़े जीवन सूत्र नहीं है? सफलता की तलाश में शॉर्टकट ढूंढ रहे युवाओं, अध्यात्मिक गुरु की खोज में कथावाचको के पीछे भाग रही दुनिया ,अंधी भक्ति और  कट्टर हो रहे समाज के लिए वास्तविक गुरु मंत्र नहीं है ये दोहे ?
          भले ही कबीर दास जी ने अक्षर ज्ञान प्राप्त नहीं किया। वह निरक्षर थे, अनपढ़ थे। पर उनकी शिक्षाएं अक्षर ज्ञान से भी ऊपर तत्व ज्ञान प्रदान करती है तथा सही जीवन जीने की राह बताती है ।
          कबीर ने कहा भी- लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात.  नहीं, पढ़कर नहीं कह रहे .देखा है आंखों से.जो नहीं देखा जा सकता, उसे देखा है, और जो नहीं कहा जा सकता, उसे कहने की कोशिश की है.
             बहुत श्रद्धा से ही कबीर समझे जा सकते हैं.ऐसा ना हो तो समझना कि कबीर के शब्द पकड़े, शब्दों की व्याख्या की,शब्दों के अर्थ जाने; पर वह सब ऊपर ऊपर का ही काम है.
कितनी अर्थ पूर्ण बात की है ओशो ने. कबीर को याद करने वाले उनकी बातों के मर्म तक कितना पहुंच पाए है.
          बाल्यावस्था में संत कबीर की वाणी को बार-बार रटने
वालों को जीवन के मध्यकाल में कबीर की वाणी कितनी याद रहती है?
           यह विडंबना ही है कि हर महापुरुष की तरह कबीर को भी अनुयायियों ने भगवान मान कर पूजा, मगर धार्मिक रूढ़ियों और कर्मकांड ओं को तोड़ने में अधिकांश विफल रहे. कबीर के काल में भी धार्मिक पाखंड और भेदभाव शीर्ष पर था. आज भी है. इतने सालों में पहनावा बदला है मगर सोच तो वही है.बल्कि अधिक संकीर्ण हुई है।

कबीर होते तो आज भी यही कह रहे होते हैं

हिंदू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहे रहमाना, आपस में दोउ लड़ी लड़ी मूए, मरम ना कोउ जाना

कबीरा खड़ा बाजार में, लिये लूंकाटी हाथ, जो घर फूंके आपनो, चले हमारे साथ.
 
कबीर आज भी पुकार रहे हैं उनके साथ जाने के लिए वास्तव का घर फूकने की आवश्यकता नहीं है। ईगो, हमारा अहंकार, घमंड,ताकत, श्रेष्ठा व जातिवाद के घर  को फूकने की जरूरत है.
         परमात्मा कबीर द्वारा जो ज्ञान का मार्ग बताया गया उस पर चलकर हर धर्म और जाति का व्यक्ति अपना जीवन सफल बना सकता है  अपने जीवन को एक नई दिशा में अग्रेषित कर सकता है।

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