पूर्व मुख्यमंत्री ने की मुलाकात....

प्रेस नोट। 

- दलित-आदिवासियों से मिले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह, न्याय दिलाने का दिया भरोसा

- निर्दोष दिव्यांग लक्ष्मणसिंह से मिलकर जगनपुर स्थित आदिवासियों की जमीन को देखा, पीडि़तों से चर्चा की
  
- कैन्ट पुलिस की संदिग्ध कार्यशैली के चलते आमजन का पुलिस और कानून पर से उठ रहा भरोसा

- भूमाफियाओं के कहने पर यह सब कुछ हुआ उन पर सख्त कार्यवाही होना चाहिए: दिग्गी 




भारत सागर न्यूज/गुना । शहर में जैसे-जैसे जमीनों की रेट बढ़ती जा रही हैं वैसे-वैसे दलित-आदिवासियों की जमीन छीनने की कोशिशें भूमाफिया कॉलोनाईजरों के द्वारा की जा रही हैं। ऐसा ही एक मामला पिछले 6 महीने से गर्माया हुआ है जिसमें आदिवासियों की जमीन हड़पने के लिए कॉलोनाईजरों ने ऐसा षडय़ंत्र रचा कि कैन्ट पुलिस के आशीर्वाद से जमीन मालिकों को ही पकडक़र जेल में डाल दिया। एक आदिवासी बुजुर्ग महिला को तो महिला दिवस के मौके पर ही बिना महिला पुलिसकर्मी के पुलिस जवानों ने पकडक़र थाने की हवालात में बंद कर उसे जेल भेज दिया था।





दरअसल पूरा मामला ये है कि हड्डीमिल निवासी जवाहरसिंह सहरिया के परिवार की वेशकीमती जमीन जगनपुर में स्थित है। जिसको शहर के ही कॉलोनाईजर शिशुपाल रघुवंशी, अखिलेश जैन, अंशुल सहगल, दीपक श्रीवास्तव सहित अन्य भूमाफिया छीनना चाहते हैं। इन्होंने सरकार की योजना का लाभ दिलाने के नाम पर झांसा देकर 11 लोगों के नाम अनुबंध करवा लिया। जिनमें लक्ष्मणसिंह सहरिया, बलवीरसिंह सहरिया, लखनसिंह सहरिया, सुशीला बाई सहरिया, तोरन सहरिया, मेवा बाई सहरिया, लीला बाई सहरिया, अनिल सहरिया, राजू सहरिया, बल्लो बाई सहरिया और कांति बाई सहरिया के नाम से शिशुपाल सिंह रघुवंशी ने अपने नाम पर अनुबंध करा लिया और चेक दिया, लेकिन चेक क्लीयर नही हुआ। 



इसके बाद 11 अनुबंध धारियों में से 4 समझदार लोगों और 3 निर्दोष पर मामला दर्ज करा दिया। इनमें समाजसेवी दिव्यांग लक्ष्मणसिंह अहिवार, रामवीर जाटव और जितेन्द्र अहिरवार हैं। इस तरह जमीन मालिकों पर ही उल्टा पुलिस ने कॉलोनाईजरों के कहने पर एफआईआर दर्ज करा दी। जबकि पुलिस ने जो चालान पेश किया है उसमें कही से कहीं तक पुलिस पर कोई सुबूत नही है, इसके बावजूद भी पुलिस ने तथ्य छुपाते हुए तीन निर्दोष समाजसेवियों तथा जनप्रतिधि पर कैन्ट थाने में झूठी प्रकरण दर्ज करा दिया। जिस पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने कैन्ट पुलिस की संदिग्ध कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाते हुए ऐसे लोगों पर सख्त कार्यवाही की बात कही है। इस मामले में उन्होंने स्वयं जाकर कलेक्टर से मिलने की बात की है।



कॉलोनाईजरों ने पुलिस को बताई राशि में अंतर, तथ्यों को छुपाया

जांच का विषय ये भी है कि कॉलोनाईजर जो भी लिखकर दे रहे हैं उसे पुलिस सच मानकर चल रही है और जमीन मालिकों को फंसाया जा रहा है तो वहीं इस प्रकरण में तीन अन्य समाजसेवियों को जबरन घसीट रही है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक शपथ पत्र में चेक से राशि बताई गई है और दूसरे पत्र में राशि नगद बताई जा रही है। इसके अलावा भूमाफियाओं के साथ-साथ देशभक्ति जनसेवा का ध्येय रखने वाली पुलिस भी इस पूरे मामले में तथ्यों को छुपाकर काम कर रही है। जिससे आम जनता का पुलिस के साथ-साथ कानून पर से भरोसा उठता जा रहा है।

सीएसपी की रिपोर्ट में निर्दोष साबित

आदिवासियों के इस मामले में झूठे फंसाए गए निर्दोश दिव्यांग लक्ष्मणसिंह अहिवार, रामवीर जाटव और जितेन्द्र अहिरवार सीएसपी के द्वारा कराई गई जांच रिपोर्ट में निर्दोष साबित हुए हैं। इसके बावजूद भी कैन्ट थाना पुलिस के विवेचक ने चालान में उस जांच प्रतिवेदन को शामिल नही किया गया। चालान में यह भी बात सामने आई है कि विवेचना अधिकारी ने जिन लोगों को साक्ष्य के तौर पर गबाह बनाया है उनमें से कई लोगों को पता ही नही है और ना ही उन्होंने इस प्रकार के कोई बयान दिए। फिलहाल पीडि़त लोगों की मांग है कि वह निर्दोष साबित हुए हैं और उन्हे मानसिक प्रताडऩा दी गई है, समय के साथ-साथ आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा तो ऐसे फर्जी एफआईआर कराने वाले दोषी कोलोनाइजरों पर भी एफआईआर दर्ज की जाए यही सच्चा न्याय होगा।



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