प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रासंगिक, प्रेमचन्द का साहित्य आज भी दिखाता है रोशनी

लेखन में समाज को बदलने का माद्दा

 

देवास। सवा सौ साल बाद प्रेमचन्द आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, बल्कि आज की स्थितियों में पहले से कहीं ज्यादा ही. उनके लेखन में समाज बदलने का माद्दा है। यह बात कलम के सिपाही कहे जाने वाले ख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 139 वीं जयंती पर प्रगतिशील लेखक संघ के द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्रम में प्रलेश से जुड़े मेहरबान सिंह ने शासकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय बीराखेड़ी में कही।

     उन्होंने कहा कि जब तक समाज में किसानों की बदहाल स्थिति रहेगी। जब तक अन्य्याय और पाखंड का बोलबाला रहेगा, तब तक प्रेमचंद का साहित्य हमें रोशनी दिखाता रहेगा। अध्यक्षता करते हुए अशोक बुनकर ने कहा कि उनका लेखन जनता का लेखन है। वे किसी वाद या झंडे के नीचे खड़े रहने वाले लेखक नहीं थे, उनका लेखन तो जनता की पक्षधरता का लेखन था। वे सच्चे अर्थों में जनता की पीड़ा को स्वर देने वाले कहानीकार थे। धीरजसिंह राणा ने कहा कि प्रेमचंद ने हमेशा दलित, शोषित एवं पीडि़त वर्ग की पीड़ा को अपने साहित्य में उकेरा है। कार्यक्रम में प्रेमचन्द की कहानी ईदगाह, पंच परमेश्वर का पाठ निहारिका एवं निकिता सहित अन्य विद्यार्थियों ने किया। साथ ही कु. अलका ने प्रेमचंद जी की जीवनी एवं उनकी रचनाओ पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर मनोहर सिंह ठाकुर, भगवानदास मेहता, राकेश चौधरी, अब्दुल रजक कुरैशी आदि सहित कई शिक्षक साथियो ने प्रेमचंद के बारे में विस्तार पूर्वक अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन प्रदीप खोचे ने किया एवं आभार प्रधानाध्यापक श्री राणा ने माना।

 

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