बैंक मैनेजर का गैर जिम्मेदाराना रवैया आया सामने, भारी बारिश में ग्राहकों को लंच टाईम का बोलकर बाहर निकाला गेट पर लगाया ताला!




सीहोर(जावर)/रायसिंह मालवीय की रिपोर्ट -  वैसे तो हम सभी को बैंक में किसी न किसी काम से जाना ही पड़ता है। कई बार हम ऐसे समय में पहुँच जाते हैं जब बैंक के अंदर कर्मचारी लंच कर रहे होते हैं। बैंक का मेन गेट बंद होता है और बाहर बैठा गार्ड “लंच टाइम है” कहकर आपसे इंतजार करने को कहता है। अपने जीवन में हर किसी को इस परिस्थिति का सामना जरूर करना पड़ा होगा।


ऐसा ही मामला सीहोर जिले के जावर तहसील के डोडी में स्थित बैंक ऑफ़ इंडिया में देखने को मिला जहां शुक्रवार के दिन बाजार का दिन रहता है आस - पास के ग्रामीण बाजार करने आते है। जब बैंक में पैसे निकालने जाते है तो बैंक मे लंच टाईम में लंच का बोलकर ग्राहकों को बैंक से बाहर निकाल दिया जाता है और गेट में ताला लगा दिया जाता है। पिछले शुक्रवार के दिन भारी बारिश के बीच ग्राहकों को बैंक से बाहर कर दिया गया। बैंक कर्मी अंदर स्वादिष्ट व्यंजन का आनंद लें रहे थे और ग्राहक गेट के बाहर बारिश से बचने के लिए बचते बचाते खड़े देखे गए।


सूत्रों की माने तो यहां पर लंच टाइम का बोलकर रोज़ गेट में ताला लगा दिया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि बैंक लंच टाइम में काम बंद नहीं कर सकते है, जबकि लंच टाइम का बोलकर काम बंद कर देते हैं।
                                         आरबीआई के अनुसार, सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक बिना लंच ब्रेक के सेवाएं देना बैंकों से अपेक्षित है। बैंक अधिकारी एक-एक करके लंच कर सकते हैं। इस दौरान नॉर्मल ट्रांजेक्शन चलते रहना चाहिए। 
अधिकतर पब्लिक सेक्टर के बैंकों में लंच टाइम का बोर्ड लगा दिया जाता है। 
लंच के नाम पर ग्राहक घंटों इंतजार करते हैं। जबकि नियमों के मुताबिक ऐसा नहीं किया जा सकता।
लंच का बोलकर गेट बंद नही कर सकते।


वैसे बैंक ऑफ़ इंडिया की डोडी शाखा की शिकायते कई दिनों से मीडिया को मिल रही थीं।
एक ग्राहक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वर्तमान बैंक मैनेजर ने पड़ोस के एक ही गांव में 100 से अधिक पशु केसीसी स्वीकृत की है जिसमे कई अपात्र लोगो के शामिल होने की बात भी की जा रही है।
सूत्रों की माने तो कहा तो यह भी जा रहा हैं कि यह पशु केसीसी बैंक में पदस्थ एक अस्थाई कर्मचारी और कियोस्क संचालक के कहने पर ही खुद के गांव में ही स्वीकृत हुई है।

एक ही गांव में इतनी पशु केसीसी देने पर भी सवाल खड़े होते है कि उसी गांव पर बैंक प्रबंधक की इतनी कृपा दृष्टि क्यो ?

बरहाल यह जांच का विषय है कि इसमें कितनी सच्चाई है।
विश्वसनीय सूत्र तो यहां तक बता रहे है कि बैंक मैनेजर का यहीं के कुछ चुनिंदा लोगों से खास लगाव होने के कारण, किसी को लोन देने से पहले मैनेजर साहब उन चुनिंदा लोगों से मौखिक अनुशंसा मिलने पर ही लोन स्वीकृत करते हैं।























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